जग मान बड़ाई मनुष्य का
यह नैसर्गिक भूख प्यास है,
सभी मनुज में ये आकांक्षा
की रहती बड़ी बड़ी आस है !
महान बनें यशस्वी कहलाये
प्रशंसा हो और हों गुणगान,
कोई नही चाहता छोटा बने
छोटेपन की न हो पहचान !
पर सत्यता तो सत्य है परम
लघुता से ही मिलता प्रभुता है,
बीज से विशाल ये बनता वृक्ष
तब मिटना अपने को पड़ता है !
मनुज की कमजोरी उनकी अहं
मद से चूर हो करता वह करम,
गर मैं झुक गया, सह लिया तो
सिर्फ़ यही तो है उसका भरम !
सुनों संत महात्माओं का कथन
नही झुके ये दुर्योधन और रावन
अहंकार से प्रभुता छीना गया
बदतर हुआ ये राजसी जीवन !
-- मसखरे राजकुमार
इस अंक के रचनाकार
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बुधवार, 12 जनवरी 2022
लघुता से प्रभुता !
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