प्रिया सिन्हा " सन्दल "
जिस गली से भी हम गुज़रते हैं
लोग जलते हैं बात करते हैं।।
बात हर बार साफ करते हैं
इसलिए हम भी उनको खलते हैं।।
राज़-ए-दिल ना किसी से तुम कहना
लोग पीछे से सिर्फ हँसते हैं।।
बदज़ुबानी से करते बात मगर
बाद कहने के हाथ मलते हैं।।
ज़िंदगी ने हमें यूँ ठुकराया
अब तो जीते हैं न ही मरते हैं।।
लाख आँखों मे ये समंदर हों
हम कलंदर हैं सिर्फ हँसते हैं।।
अब भरोसा नही है बातों पर
लोग बातों ही से तो छलते हैं।।
अब किसी से नही है डर "सन्दल"
हम हथेली पे जान रखते हैं।।
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