जिंदगी क्या थी ... अब क्या हो गई
न संभली न संभाली जिंदगी धो गई
थोड़ी सी ज़बान बस फिसल गई थी
आज जिंदगी किदर से किदर हो गई
मेरी अपनी बहुत सारी गलतियां थी
जागते - जागते मेरी किस्मत सो गई
सीखना मेरे मन को ना भाया
तो जिंदगी छड़ी वाली शिक्षक हो गई
पायल पैर के बंधन है ये पता न था
वापिस कभी लौट न सकी जो गई
मनमर्जियों को मैं आजादी
समझी भारी भूल हो गई
जिंदगी ढंग से जीना सीख लें
दीपक सीखा नहीं मैं तो गई
थोड़ी सी ज़बान बस फिसल गई थी
आज जिंदगी किदर से किदर हो गई
मेरी अपनी बहुत सारी गलतियां थी
जागते - जागते मेरी किस्मत सो गई
सीखना मेरे मन को ना भाया
तो जिंदगी छड़ी वाली शिक्षक हो गई
पायल पैर के बंधन है ये पता न था
वापिस कभी लौट न सकी जो गई
मनमर्जियों को मैं आजादी
समझी भारी भूल हो गई
जिंदगी ढंग से जीना सीख लें
दीपक सीखा नहीं मैं तो गई
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