प्रिया सिन्हा ’ संदल’
बेबसी को दर्द की स्याही में रखकर देखना,
बन के निखरोगे कभी यूँ तुम भी शायर देखना।
रफ्ता - रफ्ता क्यूँ पिघलती है शमा हर रोज़ यूँ,
हो सके इक शब को तुम शम्मा सा जलकर देखना।
आँख अपनी बन्द कर के कोई रिश्ता मत रखो,
चल न जाये पीठ पर धोखे का खंजर देखना।
मत करो ज़ुल्म -ओ -सितम ताकत दिखाना छोड़ दो,
घर से न हो जाये मुफ़लिस कोई बेघर देखना।
भेज कर सरहद पे बेटे को हुआ गौरव तो है,
माँ ने अपने सिने पर रक्खा है पत्थर देखना।
देखना मत देखना तुम चोर नज़रों से कभी,
हो सके तो इक दफ़ा तुम दिल लगाकर देखना।
इस जहाँ से उस जहाँ तक हम दीवाने हैं तेरे,
हमसा कोई दूसरा मिल जाए जा कर देखना।
रोकना मत चाहतों को दिल पे किसका ज़ोर है,
हो सके तो इश्क के दरिया में बहकर देखना।
’ संदली’ छाँव में कितना है सुकूँ भी देख लो,
मेरे शानो पर कभी तुम सर झुका कर देखना।
बेबसी को दर्द की स्याही में रखकर देखना,
बन के निखरोगे कभी यूँ तुम भी शायर देखना।
रफ्ता - रफ्ता क्यूँ पिघलती है शमा हर रोज़ यूँ,
हो सके इक शब को तुम शम्मा सा जलकर देखना।
आँख अपनी बन्द कर के कोई रिश्ता मत रखो,
चल न जाये पीठ पर धोखे का खंजर देखना।
मत करो ज़ुल्म -ओ -सितम ताकत दिखाना छोड़ दो,
घर से न हो जाये मुफ़लिस कोई बेघर देखना।
भेज कर सरहद पे बेटे को हुआ गौरव तो है,
माँ ने अपने सिने पर रक्खा है पत्थर देखना।
देखना मत देखना तुम चोर नज़रों से कभी,
हो सके तो इक दफ़ा तुम दिल लगाकर देखना।
इस जहाँ से उस जहाँ तक हम दीवाने हैं तेरे,
हमसा कोई दूसरा मिल जाए जा कर देखना।
रोकना मत चाहतों को दिल पे किसका ज़ोर है,
हो सके तो इश्क के दरिया में बहकर देखना।
’ संदली’ छाँव में कितना है सुकूँ भी देख लो,
मेरे शानो पर कभी तुम सर झुका कर देखना।
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