डॉ सीमा विजयवर्गीय
नए तराने, नए फ़साने सुनाने आया बसन्त फिर से
सुहाने मौसम के रंग सारे दिखाने आया बसन्त फिर से
लिए खड़ा है बहुत जतन से वो महके - महके गुलाब प्यारे
हर एक दिल की हर इक गली को सजाने आया बसन्त फिर से
हर एक दिल की हर इक गली को सजाने आया बसन्त फिर से
गुज़र गया इक बरस ही पूरा, मगर धरा की ले कौन सुध अब
लो झोली में भर के चाँद - तारे मनाने आया बसन्त फिर से
लो झोली में भर के चाँद - तारे मनाने आया बसन्त फिर से
समय की धारा में खो गए जो, वो मेरे सपने, वो मेरे अपने
कसक पुरानी, पुरानी यादें जगाने आया बसन्त फिर से
कसक पुरानी, पुरानी यादें जगाने आया बसन्त फिर से
कली - कली पे मैं छा रहा हूँ, निहारो मुझको करीब आकर
तुम्हारी खातिर चला हूँ घर से, जताने आया बसन्त फिर से
कहीं था कुहरा, कहीं था पाला, ये पिछले दिन भी बहुत कठिन थे
हवा सजीली सुखद चलाकर, हँसाने आया बसन्त फिर से
हवा सजीली सुखद चलाकर, हँसाने आया बसन्त फिर से
कभी तो घर से निकल के देखो ये नदिया - झरने, ये फूल - तितली
हँसी - खुशी के ये चार पल हैं बताने आया बसन्त फिर से
हँसी - खुशी के ये चार पल हैं बताने आया बसन्त फिर से
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