नरेश अग्रवाल
गाइड ने एक मोड़ पर छोड़ दिया हमें
कहा, देखिए,इस खूबसूरत शहर के उजाड़ को
जो बारूद के कहर से बुरी तरह टूटा
फिर बन न सका
हम बढ़ते ही गये आगे
इतनी अधिक टूट - फूट
गढ्ढे ही गढ्ढे
फिर भी इंसान जिंदा
कोई न कोई कोना उनके रहने के लिए
बच्चे खेल रहे हैं, बूढ़े गा रहे हैं
जवान काम पर लगे हुए
हम दर्शकों को देखकर उन्हें कोई आश्चर्य नहीं
जानते हैं हम उन्हें कुछ नहीं दे पायेंगे
हम अपनी आंखों को ही दे रहे
उजाड़ में भी सुंदरता
पुराने में भी शिशु सा नयापन है
हार में भी जीत
उनके संघर्ष को आंसुओं की तरह नहीं
आदर से आंखों में बसाये हुए
प्रेरणा लेते, वापस लौटे घर।
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