बसंत ऋतु आगमन पर प्रकृति के सौंदर्य को समर्पित भाव
हरेन्द्र चंचल वशिष्ट
हरेन्द्र चंचल वशिष्ट
पीली पीली सरसों फूली, खुशबू मिली हवाओं में।
हरे खेत,सौंधी माटी की महक उड़ी फिज़ाओं में।।
रंग रंगीले फूल खिल रहे, कोयल राग सुनाए रे,
आया है मधुमास रंगीला ढोलक फाग बजाए रे ,
नई कोंपलें नींद से जागीं,खुलीं आंख शाखाओं में।।
आमों पर अब बौर छा गए,सुरभित हुई बयार रे,हरे खेत,सौंधी माटी की महक उड़ी फिज़ाओं में।।
रंग रंगीले फूल खिल रहे, कोयल राग सुनाए रे,
आया है मधुमास रंगीला ढोलक फाग बजाए रे ,
नई कोंपलें नींद से जागीं,खुलीं आंख शाखाओं में।।
भंवरों और तितलियों को पुष्पों से हुआ प्यार रे,
ऋतु बसंत का राग गूँजा चारों ओर दिशाओं में।।
शीत ऋतु का अंत हुआ,फाग ने ली अंगड़ाई रे,
कलियाँ और कुसुम इतराए, बसंत पंचमी आई रे,
लद गए फूल और फलियाँ बेलों और लताओं में।।
ऋतु बसंत का राग गूँजा चारों ओर दिशाओं में।।
शीत ऋतु का अंत हुआ,फाग ने ली अंगड़ाई रे,
कलियाँ और कुसुम इतराए, बसंत पंचमी आई रे,
लद गए फूल और फलियाँ बेलों और लताओं में।।
गेंदा गुलाब चंपा पलाश खिल गया सदाबहार रे,
गुड़हल, चमेली टेसू मोगरा की अब आई बहार रे,
मादकता वसुधा की अब रही नहीं सीमाओं में।।
जौ बाजरा मक्का गेहूँ, धान चना लहराए रे,गुड़हल, चमेली टेसू मोगरा की अब आई बहार रे,
मादकता वसुधा की अब रही नहीं सीमाओं में।।
पकी फसल देख किसान मन ही मन हरषाए रे,
रखे शारदे किरपा,चंचल जोड़ें हाथ दुआओं में।।
रखे शारदे किरपा,चंचल जोड़ें हाथ दुआओं में।।
नई दिल्ली भारत
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