दिनेश्वर दयाल
हमारी त्रुटियों ने मुझसे कह दी,
सुनो दिनेश्वर विचार करना।
संस्कार दायित्व कर्तव्य तुम्हारा,
धर्म समझकर ही निर्णय लेना।
गलत नहीं तुम सही कहा हो,
जरा सा मंथन जरूर करना।
बच्चे तो बच्चे परिजन भी बदले,
गद्दारी किसने कि ध्यान रखना।
ना वो तुम्हारा कहा ही मेरा,
समस्या गम्भीर समझ तू चलना।
उत्साह तुम्हारा आत्मज्योति जननी,
कृपा जगत जन कीमाँग करना।
ना कोई शत्रु मित्र ही जग में,
निष्ठां से अभिनय सदा तू करना।
युगो तपस्या फल प्राप्त कर तुम,
सच्चाई से ना मुँह मोड़ चलना।
हे आत्मज्योति आदेश तुम्हारा,
निष्ठां से पालन हमें हैं करना।
तू मित्र मेरी हो युग सहायक,
काया तो नश्वर मिल नष्ट होना।
इस अंक के रचनाकार
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मंगलवार, 22 फ़रवरी 2022
आत्ममंथन
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