उषा राठौर
कितना सूना है जीवन
कितना व्यथित है मन
न आशा न निराशा
न इच्छा न अनिच्छा
न खुशी न गम
न दवा न कोई दर्द
हर तरफ है चुभन
कितना व्यथित है मन
न पतझर की कसक
ने बसंत की प्रतीक्षा
न हंसने का मन
न रोने की इच्छा
कटु है हर अनुभव
कितना व्यथित है मन
न अपना कोई
न पराए सभी
न जाना कहीं
न रहना यही
प्रस्तर है तन - मन
कितना व्यथित है मन
न मंजिल कोई
न साथी कोई
न दीया कोई
न बाती कोई
उम्र चिंताओं को अर्पण
कितना व्यथित है मन
छुटमलपुर सहारनपुर
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