कमल सक्सेना कवि एवं गीतकार
जब - जब हमने दीप जलाये तब - तब आयीं तेज हवायें।
रेत पे कोई नाम लिखा जब, घुमड़ - घुमड़ कर बरसीं घटायें।
रेत पे कोई नाम लिखा जब, घुमड़ - घुमड़ कर बरसीं घटायें।
सिमट गये हैं अधर हमारे, हमने इतने नमन किये है।
झुलस गये हैं हाथ हमारे, हमने इतने हवन किये है।
हमने इतने पत्थर तोड़े, हाथों की मिट गयीं रेखायें।
हमने हर दुख को जीता है, पर हम हारे संबंधों से।
कुछ अपनों से घाव मिले हैं, पीर मिली है अनुबंधों से।झुलस गये हैं हाथ हमारे, हमने इतने हवन किये है।
हमने इतने पत्थर तोड़े, हाथों की मिट गयीं रेखायें।
हमने हर दुख को जीता है, पर हम हारे संबंधों से।
हमने जब - जब ठोकर खायी, पत्थर भी बन गये शिलायें।
हमने अब तक पाँवों के, टूटे काँटे ही मित्र बनाये।
सावन में टूटे झूलों के, धुँधले - धुँधले चित्र बनाये।
पर जब एक पल सुख में झांका, गली - गली में हुई सभायें।
अपने नैनों के पावन जल को हमने गंगा जल समझा।
सावन में टूटे झूलों के, धुँधले - धुँधले चित्र बनाये।
पर जब एक पल सुख में झांका, गली - गली में हुई सभायें।
अपने नैनों के पावन जल को हमने गंगा जल समझा।
जब - जब हमको कफ़न मिला, तो वो प्रीतम का आँचल समझा।
कमल खुले जब अधर हमारे तब - तब हमको मिलीं सज़ाएं।
कमल खुले जब अधर हमारे तब - तब हमको मिलीं सज़ाएं।
बरेली
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें