पारुल चौधरी
कितना कुछ कह रहा है ये प्यारा गुलाब
खिलखिलाकर मुस्कुरा रहा है ये गुलाब
पर इंसानी फ़ितरत छीन लेती है ये मुस्कान
जब तोड़कर डाली से सजाते है खुद के ख़्वाब
इसके अपने शूलों में भी ये खुश रहता है
अपने तो होते है अपने ये हरदम कहता है
अपने स्वार्थ में हम इस कदर खो जाते है
ये प्यारे से गुलाब बस टूटकर रो जाते है
मुरझा जाते है फिर भी खुशबू नहीं खोते
क्योंकि ये इंसानों की तरह बेवफा नहीं होते
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