सतीश चन्द्र श्रीवास्तव
उम्मीदों की झड़ी से
लद दब गया किसान।
तुमको वोटें सूझती
उसके नहीं पिसान।।
तुम साथी दो दिन के
सपने हरे दिखाय।
चार दिनों के बाद फिर
फसल सांड़ चरि जांय।।
फाइल में सब घोषणा
फाइल फंसा विकास।
काम बोलता कागजी
तल पर सत्यानाश।।
ऐसा वादा ना करो
हे जालिम महराज।
जिसको पूरा करन में
डूबे भरा जहाज।।
तर्क- कुतर्कों की झड़ी
असमय कृपा बहार।
गिरगिट जी फिर आ गए
लेकर माइक,कार।।
अव्वल दिखने की लगी
जेबकतरों में होड़।
तीर तमंचों से हुआ
दलपति का गठजोड़।।
रामपुर मथुरा, जिला सीतापुर
इस अंक के रचनाकार
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रविवार, 20 फ़रवरी 2022
उम्मीदों की झड़ी से लब दब गया किसान
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