सुरेश वाहने
ऊंगली के इशारे से चुप कराते हुए नेताजी कान के पास आकर बोले -धीरे बोल भाई धीरे। दीवारों के भी कान होते हैं। बात ये है कि मैं सरपंच पद के लिए खड़ा हो रहा हूँ। दलित ये फोटो देखते ही मुझे अपना हितैषी मान बैठते हैं ।
वे मुस्कुरा उठे। संतुष्ट होते हुए बोले - आप बुद्धिमान हो। मुझे लगा, कहीं सचमुच में इन महापुरुषों के विचारों से आपका हृदय प्रभावित न हो गया हो।नेताजी बोले - भाई साहब! किसी को भले ही मन से मत मानो आप,पर ऊपरी दिखावा तो करना ही पड़ता है। यही सफल राजनीति का सूत्र है।
दोनों के ठहाके से नंग - धडंग पंखा काँप उठा।
दोनों के ठहाके से नंग - धडंग पंखा काँप उठा।
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