इस अंक के रचनाकार

इस अंक के रचनाकार आलेख : साहित्य में पर्यावरण चेतना : मोरे औदुंबर बबनराव,बहुजन अवधारणाः वर्तमान और भविष्य : प्रमोद रंजन,अंग्रेजी ने हमसे क्या छीना : अशोक व्यास,छत्तीसगढ़ के कृषि संस्कृति का पर्व : हरेली : हेमलाल सहारे,हरदासीपुर दक्षिणेश्वरी महाकाली : अंकुुर सिंह एवं निखिल सिंह, कहानी : सी.एच.बी. इंटरव्यू / वाढेकर रामेश्वर महादेव,बेहतर : मधुसूदन शर्मा,शीर्षक में कुछ नहीं रखा : राय नगीना मौर्य, छत्तीसगढ़ी कहानी : डूबकी कड़ही : टीकेश्वर सिन्हा ’ गब्दीवाला’,नउकरी वाली बहू : प्रिया देवांगन’ प्रियू’, लघुकथा : निर्णय : टीकेश्वर सिन्हा ’ गब्दीवाला’,कार ट्रेनर : नेतराम भारती, बाल कहानी : बादल और बच्चे : टीकेश्वर सिन्हा ’ गब्दीवाला’, गीत / ग़ज़ल / कविता : आफताब से मोहब्बत होगा (गजल) व्ही. व्ही. रमणा,भूल कर खुद को (गजल ) श्वेता गर्ग,जला कर ख्वाबों को (गजल ) प्रियंका सिंह, रिश्ते ऐसे ढल गए (गजल) : बलबिंदर बादल,दो ग़ज़लें : कृष्ण सुकुमार,बस भी कर ऐ जिन्दगी (गजल ) संदीप कुमार ’ बेपरवाह’, प्यार के मोती सजा कर (गजल) : महेन्द्र राठौर ,केशव शरण की कविताएं, राखी का त्यौहार (गीत) : नीरव,लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की नवगीत,अंकुर की रचनाएं ,ओ शिल्पी (कविता ) डॉ. अनिल कुमार परिहार,दिखाई दिये (गजल ) कृष्ण कांत बडोनी, कैलाश मनहर की ग़ज़लें,दो कविताएं : राजकुमार मसखरे,मंगलमाया (आधार छंद ) राजेन्द्र रायपुरी,उतर कर आसमान से (कविता) सरल कुमार वर्मा,दो ग़ज़लें : डॉ. मृदुल शर्मा, मैं और मेरी तन्हाई (गजल ) राखी देब,दो छत्तीसगढ़ी गीत : डॉ. पीसी लाल यादव,गम तो साथ ही है (गजल) : नीतू दाधिच व्यास, लुप्त होने लगी (गीत) : कमल सक्सेना,श्वेत पत्र (कविता ) बाज,.

सोमवार, 30 मई 2022

जयति जैन ’ नूतन’ की दो लघुकथाएँ

शर्मिन्दा

- अलका मैम रुकिये, थोड़ा सुनिये... मैम प्लीज
     पीछे से मोहन साहब दौड़ते चले आ रहे थे! अलका जी पीछे मुड़कर एक बार देख चुकी थीं, फिर भी तेज कदमों से उस आदमी से पीछा छुड़ाना चाहती थीं, जो उन्हीं की ओर बढ़ रहा था!
   शोपिंग प्लाजा से बाहर आते ही वह गाड़ी में बैठने को हुई, वैसे ही मोहन साहब उनकी गाड़ी का दरवाजा पकड़कर खड़े हो गये और उनके हाथ में अलका जी की लिखी किताब थी!
- मैम ओटोग्राफ  प्लीज!
    अलका जी बड़े अचम्भे में थीं, क्यूंकि ये वही प्रकाशक था जिसने 1 साल पहले अलका जी की नारी प्रधान पुस्तक को बेकार रद्दी कहकर छापने से मना कर दिया था और आज वही उनके ओटोग्राफ  के लिये उनका पीछा कर रहा था!
अचम्भे में उन्होंने उस किताब पर अपने हस्ताक्षर किये और मोहन साहब के साथ एक फोटो भी खिचा ली!
    मोहन साहब ने बड़ी शर्मिन्द्गी से माफी मांगा और कहा - मैं बहुत ही शर्मिंदा हूं अलका जी, काश बिना पढ़े मैं इस उपन्यास को बेकार ना कहता तो आज मेरा भी नाम उंचा हो गया होता! एक हफ़्ते पहले ही मुझे पता लगा कि आपको सर्वश्रेष्ठ लेखिका का सम्मान मिला तब मैंने इस उपन्यास को खरीदा और पढ़ा, तब मुझे अपनी गलती का अहसास हुआ! ये तस्वीर में सभी को दिखाऊंगा कि मैं मिला था देश की सर्वश्रेष्ठ लेखिका से!
- जैसी आपकी मरजी आदरणीय, कहकर अलका जी अपनी गाड़ी में बैठकर अपने गन्तव्य की ओर चल दीं!

काँच

     रुकमणि जी आज बड़े गुस्से में थीं। अभय बाबूजी की तो हिम्मत ही नहीं हो रही थी पास जाने की! ये गुस्सा भी तो उन्हीं का दिलाया था। बात - बात पर अपनी रुक्कू को चिढ़ाना उन्हें जो भाता था फिर क्या चिढ़ गयी उनकी रुक्कू और पड़ोसियों तक को घर पर बर्तन फेंकने की खबर मिल गयी। गुस्से में रुकमणि जी हमेशा घर के बर्तन का ही सहारा लेती थीं, वही फेंकती थी! अभय बाबूजी के घर के ज्यादातर बर्तन टेड़े - मेड़े थे!
- रुक्कू देखो वो गिलास नहीं फेका अभी तक तुमने, बेचारा इंतजार कर रहा है? अभय बाबूजी का बोलना हुआ और वह गिलास जमीन पर फिर नजर आया फ्रिज पर रखा फोटोफ्रेम जिसे 1 दिन पहले ही अभय बाबूजी लेकर आये थे, साथ ही 4 - 5 और भी लाये कि उनकी रुक्कू पसंद कर ले कौन सा उसे चाहिये पर किस्मत से एक ही फ्रिज पर रखा था फोटो से सजा!
रुकमणि जी ने उठाया और जमीन पर कुछ ही सेकेन्ड में एक कांच छोटे - छोटे टुकडों में तब्दील!
अपनी शादी की फोटो जमीन पर देख वह खुश तो नहीं हुई लेकिन गुस्सा जरुर कम हो गया!
     दूसरा वह उठा पाती इससे पहले ही अभय बाबूजी ने उनको दिया कि लो तोड़ दो मेरी जान,सारे तोड़ दो! दुकान वाले को बोल देंगे रास्ते में गिरकर टूट गये!
रुकमणि जी की आंखों में आंसू थे, जो कांच के टूट जाने से नहीं बल्कि जमीन पर पड़ी उस फोटो से थे। जिसको अभय बाबूजी कांच के टुकड़ों के बीच से उठा रहे थे!

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें