ज्ञानदेव मुकेश
दयाल जी ने डिपार्टमेंटल स्टोर में घर के लिए सभी तरह के सामान लिए। वे हर कियोस्क के सामने जाते और सामने रखा सामान बहुत जरूरी समझ में न आता तो भी उसे वर्तमान या भविष्य के लिए जरूरी मानकर ट्रॉली में डाल देते। ट्राली नीचे से ऊपर तक लबालब भर गयी थी। उन्होंने कुछ ऊहापोह में रहते हुए वस्तु - चयन को विराम दिया और भुगतान काउंटर पर आ गए। शान से कार्ड द्वारा भुगतान किया और जैसे दुकान खरीद लिया हो, उस भाव से कार में आकर बैठ गए।
कार चल पड़ी। अभी कार दो फर्लांग भी नहीं बढ़ी थी कि दयाल जी को उधेड़बुन - सा होने लगा - कहीं कोई सामान लेना रह तो नहीं गया? वे दिमाग पर जोर डालने लगे। जल्दी ही उन्हें अनुमान होने लगा कि यह सामान भी ले लेना चाहिए था, वह सामान भी ले लेना चाहिए था। एक ट्राली भर गयी तो क्या हुआ, दूसरी ली जा सकती थी। वह खुद पर खीज पड़े और उन्होंने ड्राइवर को कर वापस दुकान तक ले चलने को कहा।
कार मुड़ गयी। तभी दयाल जी ने देखा किनारे फुटपाथ पर दो डस्टबिन रखे हैं। कुछ अधनंगे बच्चे उनमें कुछ खोज रहे हैं। उनमें आपस में होड़ - सी मची है। एक बच्चे को काम की कोई चीज हाथ लगी। वह हुर्रे हुर्रे करता हुआ घर की तरफ दौड़ पड़ा। तभी दूसरे को कुछ मिला। वह भी ख़ुशी से उछला और घर की तरफ भागा। फिर एक के बाद एक को कुछ न कुछ मिलता गया और वे ख़ुशी में नाचते - झूमते सड़क पर भागने लगे। उनकी ख़ुशी देखने लायक थी।
दयाल जी गहरे सोच में डूब गए। एक तरफ कार में लदे सामान के साथ उनकी अपनी खीज थी तो दूसरी तरफ उन बच्चों का उल्लास था। दोनों में अजीब अंतर दिखा। उनका मन हुआ, बच्चों से उनकी ख़ुशी छीन लें। मगर यह संभव कहाँ था ? वे कुछ पल किंकर्तव्यविमूढ़ रहे। फिर उन्होंने अचानक ड्राइवर से कहा - ड्राइवर,दुकान नहीं ... घर वापस चलो!
कार घर की तरफ दौड़ पड़ी। कार के वापस चलते ही दयाल जी की खीज़ ख़त्म होने लगी। उनके चेहरे पर मुस्कान ने स्थान लेना शुरू कर दिया था।
301,साईं हारमनी अपार्टमेंट,
न्यू पाटलिपुत्र कॉलोनी, पटना - 800013
न्यू पाटलिपुत्र कॉलोनी, पटना - 800013
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