मधु शुक्ला
डाक्टर साहब ने जाँच करके, दवाईं तो लिख दीं लेकिन गम्भीर होते हुए बोले - मैं अब घर में आकर जाँच नहीं कर सकूंगा। भाभी जी के ऊपर हाथ उठाना बंद कर दो।सिंह साहब गुर्राते हुए बोले - उपदेश मत दे यार मैं पहले ही परेशान हूँ।
- तू मेरा बचपन का दोस्त और पड़ोसी है। इसीलिए तेरे पाप पर पर्दा डालता रहता हूँ। लेकिन अब और नहीं। डाक्टर ने चाय को हाथ नहीं लगाया और फीस भी नहीं ली।
सिंह साहब क्रोध से पैर पटकते अंदर चले गए। डाक्टर को बाहर तक छोड़ने भी नहीं गए।
पत्नी के पास पहुँचते ही सिंह साहब का क्रोध घबराहट में बदल गया। पत्नी का ठंडा शरीर देखकर। कैसे इस मुसीबत से निकलें यह चिंता उन्हें सताने लगी। उन्होंने डॉक्टर साहब को फोन लगाकर सहायता के लिये गुहार लगाई। लेकिन डॉक्टर साहब के कदम उनके घर की तरफ नहीं बढ़े। वे अपने आपको अपराधी मान रहे थे। वे सोच रहे थे, अगर पहली ही बार पुलिस को सूचित कर देते तो ये दिन नहीं आता। मित्रता से बड़ी मानवता है। उन्होंने क्यों नहीं सोचा। विचारों के चक्रव्यूह में फँसे डाक्टर ने 100 नंबर डायल कर दिया। कानूनी कार्रवाई हुई। किन्तु डाक्टर साहब अपराध बोध से मुक्त नहीं हो पाये।
सतना,मध्यप्रदेश
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें