विष्णु खरे
बोझ उठते नही सांसों को सुला आया हूं
अपने मिलते नही गैरों को बुला लाया हूं
तंगहाली है करम की जो मालिक करता
उसके दर पर अपना हाल चढ़ा आया हूं
तौलते थे जो आंखों से मेरे होने का सच
उनके दीवान में एक दिया जला आया हूं
दीवाना हुआ जाता हूं उनके रहम के आगे
उनकी मेहरबानियां उनको सुना आया हूं
मस्त आंखों से जबसे तुमने देखा हमको
मस्ताना हुआ जलती शम्मा बुझा आया हूं
करीबी थे करीब से गुजर गए बिना देखे
हालात ऐसे हुए कि उनको साथ लाया हूं
उसके दर पर अपना हाल चढ़ा आया हूं
तौलते थे जो आंखों से मेरे होने का सच
उनके दीवान में एक दिया जला आया हूं
दीवाना हुआ जाता हूं उनके रहम के आगे
उनकी मेहरबानियां उनको सुना आया हूं
मस्त आंखों से जबसे तुमने देखा हमको
मस्ताना हुआ जलती शम्मा बुझा आया हूं
करीबी थे करीब से गुजर गए बिना देखे
हालात ऐसे हुए कि उनको साथ लाया हूं
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