प्रो. जयराम कुर्रे
तेरे लब यूँ मुस्कुराना जानते हैं।
हर ख़ुशी का ये ठिकाना जानते हैं।
हुस्न से कोई भला कब जीत पाया,
हम कहाँ इतना बहाना जानते हैं।
ये हुनर भी आपने सीखा कहीं से,
रोते बच्चों को हँसाना जानते हैं?
वक्त से कोई बड़ा मरहम नहीं है,
हर निशाँ वो भी मिटाना जानते हैं।
रोज़ ही तो होटों पे सुखी है तेरे,
शाम जैसे शामियाना जानते हैं।
हमने पूछा सबसे है जन्नत कहीं पर?
सब तेरा ही आशियाना जानते हैं।
तेरे लब यूँ मुस्कुराना जानते हैं।
हर ख़ुशी का ये ठिकाना जानते हैं।
हुस्न से कोई भला कब जीत पाया,
हम कहाँ इतना बहाना जानते हैं।
ये हुनर भी आपने सीखा कहीं से,
रोते बच्चों को हँसाना जानते हैं?
वक्त से कोई बड़ा मरहम नहीं है,
हर निशाँ वो भी मिटाना जानते हैं।
रोज़ ही तो होटों पे सुखी है तेरे,
शाम जैसे शामियाना जानते हैं।
हमने पूछा सबसे है जन्नत कहीं पर?
सब तेरा ही आशियाना जानते हैं।
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