सीमा सिकंदर
मेरे दिल का हो कोई,मुख़्तार नहीं हो सकता है।।
कितनी भी शानो-शौकत वाली,चीज़ें ले आओ पर;
बाजारू चीज़ों से,घर गुलज़ार नहीं हो सकता है।।
मेरी हिद्दत उसमें शामिल,यह मेरा दीवानापन;
मेरा ईमाॅं हो जाऐ,बीमार नहीं हो सकता है।।
अपमानित होकर भी जो,पॉं-लालच के बस झुक जाऐ;
काहिल इतना कोई भी,खुद्दार नहीं हो सकता है।।
कितना भी ज्ञानी-ध्यानी,पर उपकारी हो जाऐ यूॅं;
ईशा का इंसान कभी,अवतार नहीं हो सकता है।।
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