प्रशान्त’ अरहत’
आपका ये मशवरा भी मान लेंगे।
आपको जब ठीक से पहचान लेंगे।
तुम कहो कुछ भी हमें मतलब नहीं है,
हम करेंगे वो जिसे हम ठान लेंगे।
जानवर सब अब रहेंगे वो घरों में,
और अब उनकी जग़ह इंसान लेंगे।
जब कफ़न हम बाँधकर सर पर चलेंगे,
हम ही बढ़कर थाम वो तूफ़ान लेंगे।
आहटें सुनकर तुम्हारी धड़कनों की,
यार अब तो दूर से पहचान लेंगे।
तुम चले आओ ज़रूरत है तुम्हारी,
हम किसी का अब नहीं एहसान लेंगे।
आपका ये मशवरा भी मान लेंगे।
आपको जब ठीक से पहचान लेंगे।
तुम कहो कुछ भी हमें मतलब नहीं है,
हम करेंगे वो जिसे हम ठान लेंगे।
जानवर सब अब रहेंगे वो घरों में,
और अब उनकी जग़ह इंसान लेंगे।
जब कफ़न हम बाँधकर सर पर चलेंगे,
हम ही बढ़कर थाम वो तूफ़ान लेंगे।
आहटें सुनकर तुम्हारी धड़कनों की,
यार अब तो दूर से पहचान लेंगे।
तुम चले आओ ज़रूरत है तुम्हारी,
हम किसी का अब नहीं एहसान लेंगे।
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