रीझे यादव
मैं
अपने आपको दुनिया का सबसे बड़ा शुभचिंतक मानता हूं।भले आप लोग मानें या ना
मानें!फिर आपके मानने या ना मानने से मुझे कोई फर्क भी नहीं पड़ने वाला
क्योंकि मैंने मान लिया है।
लेकिन मेरा मानना है कि आपकोमेरी ये बात माननी पडेगी।क्यूंकि मेरे पास दुनिया के सुखद भविष्य पर लिखी कविताओं का संग्रहालय है और उस पर आनलाइन काव्य मंचों से प्राप्त असंख्य साहित्य रत्न,सप्ताह के कवि,पखवाडा़ पोएट जैसे विभूषण के आनलाइन प्रमाण पत्र है, जो प्रिंटर की एक बटन दबाते ही बोरे भरकर निकल जायेंगे।खैर,अपने मुॅंह मियां मिट्ठू बनने से क्या फायदा?ऐसी बातें ज्ञानियों को शोभा नहीं देती ।
लेकिन मेरा मानना है कि आपकोमेरी ये बात माननी पडेगी।क्यूंकि मेरे पास दुनिया के सुखद भविष्य पर लिखी कविताओं का संग्रहालय है और उस पर आनलाइन काव्य मंचों से प्राप्त असंख्य साहित्य रत्न,सप्ताह के कवि,पखवाडा़ पोएट जैसे विभूषण के आनलाइन प्रमाण पत्र है, जो प्रिंटर की एक बटन दबाते ही बोरे भरकर निकल जायेंगे।खैर,अपने मुॅंह मियां मिट्ठू बनने से क्या फायदा?ऐसी बातें ज्ञानियों को शोभा नहीं देती ।
अगल
बगल क्या देख रहे हैं।मैं अपने बारे में ही बोल रहा हूं भाई।मेरे
वाट्सएपिया ज्ञानवाणी और फूल पान से मेरे परिजन,मित्रजन और दूर के आभासी
मित्रों के गैलरी भरे पड़े हैं।सो के उठने के बाद मैं मुंह बाद में धोता
हूं,पहले अपने सोशल मीडिया रूपी तरकश से ज्ञानबाण छोड़कर विभिन्न ग्रुपों
में सबको घायल करता हूं।वास्तविक तथ्य यही है कि ये ज्ञान मेरी खुद की
दिमाग की पैदावार नहीं होते।सोशल मीडिया पर विराजमान अन्यान्य महात्माओं से
प्राप्त ज्ञान प्रसाद है जो मैं सबको वितरित करता हूं और पुण्य लाभ लूटता
हूं।
वैसे मैं इन सबके अलावा एक चिंतनशील व्यक्तित्व भी हूं।अपने घरेलू
और निजी परेशानियों को छोड़कर सबके बारे में चिंतन करता हूं।लेकिन मुझे
महसूस हो रहा है कि पिछले कुछ वर्षों से मैं चिंतन करने के बजाय चिंता करने
लगा हूं।पिछले दो साल तक मैं कोरोना को लेकर चिंता में था।उसके बारे में
चिंता करते करते दिमाग में उपजे नकारात्मक विचारों और लापरवाही ने मुझे
पाज़ीटिव कर दिया।वो तो ईश्वर की कृपा रही और उचित उपचार समय पर उपलब्ध हो
गया तो आज आप सबको मेरा ये व्यंग्य पढ़ने को मिल रहा है।अन्यथा मैं अभी नरक
में बैठे बैठे तेल की कड़ाही में तला जा रहा होता।
तेल!!इस खतरनाक चीज
ने तो अच्छे अच्छों का तेल निकाल दिया है।इस बार की होली कम बजट में दूसरों
की जेब से गुलाल उड़ाकर मनाया हूं। पकौड़ा नामक नास्ते को याद करके आंख भर
आती है।गोल मटोल आड़े तिरछे आकृतियां बरबस आंखों के सामने आ जाती है।मन
मसोस कर रह जाता हूं।कोसता हूं उस घड़ी को...जब मैंने अच्छे दिन की सुखद
कल्पना में अच्छे दिन आने वाले हैं के नारा दाताओं का साथ दिया
था।हाय!!मेरी एक गलती ने मुझे पकौड़े खाने लायक नहीं छोड़ा।
तेल तो वाहन
चालकों का भी निकल गया है। पेट्रोल पेट्रोल ना हुआ, साऊथ स्टार पुष्पा हो
गया। अकड़ के छलांग लगाते जा रहा है और बोल रहा है...मैं झुकेगा नहीं
साला!!आम आदमी फिर से रोड पर पैदल आ गया है।पता नहीं क्यों?सारे सत्ताधीशों
को मध्यमवर्गीय परिवारों का सुख चैन देखा नहीं जाता। गरीबों को मुफ्तखोर
बनाकर और धनकुबेरों को सहूलियत के नाम पर अनाप शनाप छूट देकर सारा बोझ
मीडिल क्लास के पर डाल रहे हैं।ताकि महंगाई से जूझते जूझते उसकी कमर टूट
जाए।पेट्रोल के रेट बढ़ने का कारण पूछने पर बताया जाता है कि अंतरराष्ट्रीय
बाजारों में कीमत तेज हो जाने के कारण मजबूरी में ऐसा कदम उठाना पड़ा। मैं
सोचता हूं ये कदम दाम कम करने के लिए उस समय क्यों नहीं उठते जब
अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल के रेट न्यूनतम स्तर पर आ जाते हैं।इसका जवाब
जानने के बावजूद वर्तमान के महाराजा विक्रमादित्य जनतारूपी बेताल के इस
प्रश्न पर मौन साध लेता है।
चिंता तो मुझे यूक्रेन और रूस युद्ध के कारण
भी होने लगी है । पता नहीं क्या होगा ? खैर जो भी होगा पर ईश्वर करे भारतीय
न्यूज चैनलों के बताए अनुसार मत हो।उनके हिसाब से तो हम विश्व युद्ध के
कगार पर पहुंच गए हैं।इस चिंता के कारण मेरा वजन दो महीने से दो किलो घट
गया है।मेरी गिरती सेहत की खबर लगते ही पड़ोस के नेटवर्किंग मार्केट वाले
भाई साहब जबरदस्ती अपनी कंपनी का इम्यूनो बूस्टर और प्रोटीन पाउडर का
डिब्बा थमा गए हैं।इस विश्वास के साथ कि ईमानदार आदमी है भाग के जाएगा
कहां?यहां ईमानदार होना भी अब गुनाह हो गया है।सब मौका मिलने पर फायदा उठा
लेते हैं।
इन सारी बातों और चिंताओं से मेरा गला सूखने लगा तो श्रीमती
जी को मैंने आवाज लगाई कि भाग्यवान!!नींबू पानी पिला दो।मेरे जैसा छोटा
मोटा लो बजट का आदमी महंगे कोल्डड्रिंक और शर्बत नहीं पी सकता।तभी रसोई से
दिल दहलाने वाली आवाज आई-नींबू दस रुपए के एक मिलती है मार्केट
में,तुम्हारी तनख्वाह इतनी महंगी चीजें खरीदने की इजाजत नहीं देती।जाओ मटके
का सादा पानी पी लो।उसके गीताज्ञान सरीखी अनमोल वाणी को सुनकर मेरा सूखा
गला तर हो गया और मन तृप्त हो गया।जलपान हो गया!खैर, मुझे अपनी चिंता नहीं
है।मुझे चिंता तो बरतन धोने की टिकिया बनाने वाली उन कंपनियों की है जो
कहते हैं कि उनकी टिकिया में है सौ नींबूओं का दम!! पता नहीं वो लोग कहां
से इतना नींबू लायेंगे????
✍️ रीझे यादव
टेंगनाबासा(छुरा)
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