अनूप हर्बोला
टूटा हुआ कप
- अरे! मुनिया तू, मुनिया गीता के घर में काम करती थी। बहुत दिनों बाद,आ अंदर आ। गीता बोली।
- नमस्ते दीदी,कैसे हो?
- मैं ठीक हूँ तू सुना। आज इधर की तरफ कैसे।
- मैं भी ठीक हूँ, इधर पास ही मेरे बेटे ने घर लिया है,इधर आई थी तो सोचा आप से मिल लूँ। बहुत दिन हो गए थे आपको देखे,काफी याद आती है आपकी।
- अच्छा किया, चाय पीएगी तू।
- हाँ दीदी! पिला दो,मन भी कर रहा है आपके हाथ की अदरक वाली चाय पीने को, कितनी भी कोशिश कर लूँ मैं,आपकी वाली चाय का स्वाद आ ही नही पाता।
कुछ देर बाद ...गीता दो कप चाय के लेकर आती है और किनारे से टूटा और घिसा हुआ कप मुनिया को पकड़ाती है- ले तेरी मनपसंद अदरक और ज्यादा चीनी की चाय।
चाय का कप हाथ में लेते वो चाय को फेंक देती है।
- मैं ठीक हूँ तू सुना। आज इधर की तरफ कैसे।
- मैं भी ठीक हूँ, इधर पास ही मेरे बेटे ने घर लिया है,इधर आई थी तो सोचा आप से मिल लूँ। बहुत दिन हो गए थे आपको देखे,काफी याद आती है आपकी।
- अच्छा किया, चाय पीएगी तू।
- हाँ दीदी! पिला दो,मन भी कर रहा है आपके हाथ की अदरक वाली चाय पीने को, कितनी भी कोशिश कर लूँ मैं,आपकी वाली चाय का स्वाद आ ही नही पाता।
कुछ देर बाद ...गीता दो कप चाय के लेकर आती है और किनारे से टूटा और घिसा हुआ कप मुनिया को पकड़ाती है- ले तेरी मनपसंद अदरक और ज्यादा चीनी की चाय।
चाय का कप हाथ में लेते वो चाय को फेंक देती है।
-अरे! चाय क्यों गिरा दी।
- दीदी उसमें कुछ गिर गया था,इसलिए मैंने फेंक दी चाय...।
- क्या कोई मक्खी गिर गयी थी।
- उससे भी ज्यादा खतरनाक, मक्खी होती तो मैं हटा देती या आपको दूसरी चाय को बोल देती पर ...।
- क्या गिरा था ऐसा, बोल भी दे। जो तूने चाय गिरा दी। तू तो पहेलियां बूझ रही है।
- तिरस्कार ... टूटे कप में चाय। ऐसा बोलकर मुनिया चली जाती है।
- दीदी उसमें कुछ गिर गया था,इसलिए मैंने फेंक दी चाय...।
- क्या कोई मक्खी गिर गयी थी।
- उससे भी ज्यादा खतरनाक, मक्खी होती तो मैं हटा देती या आपको दूसरी चाय को बोल देती पर ...।
- क्या गिरा था ऐसा, बोल भी दे। जो तूने चाय गिरा दी। तू तो पहेलियां बूझ रही है।
- तिरस्कार ... टूटे कप में चाय। ऐसा बोलकर मुनिया चली जाती है।
जूठन, कभी नहीं
गुंजन की दो दिन पहले ही शादी हुई है, सारे मेहमान जा चुके हैं, आज सिर्फ घर के ही लोग हैं। दोपहर का समय है। डायनिंग टेबल से गुंजन के सास ससुर,जेठ और पति खाना खा कर उठ जाते हैं और जूठी प्लेट को वहीं छोड़ देते हैं। ये देखकर गुंजन को थोड़ा अजीब लगता है पर चुपचाप वो प्लेट उठाने लगती है।
- अरे! रहने दो वहीं और अपना खाना लगा लो रिंकू, गुंजन का पति की प्लेट में। उसकी जेठानी बोली। गुंजन को ये अटपटा और अजीब लगा। वो कुछ नहीं बोली। जेठानी सास ससुर की प्लेट उठा कर किचन में रख देती है और खुद के लिए खाना अपने पति की प्लेट में डालती है। जब गुंजन ऐसा करने से मना करती है तो पास बैठी सास बोलती है। क्यों री! क्यूं नहीं खाएगी, तू लल्ला की थाली में। पति की जूठी थाली में खाने से प्यार बढ़ता है। कोई नई बात ना है ये,सभी खाते हैं।
गुंजन चुपचाप जा कर अपने लिए दूसरी थाली लेकर खाना अपने लिए लगाती है। सास ये देखकर गुंजन पर गुस्सा करती है तो गुंजन भी खुलकर प्रतिकार करती है। काफी कहा सुनी होती है। जेठानी बीच बचाव की कोशिश करती है पर दोनों किसी नहीं सुनते। हल्ला सुन कर ससुर जेठ और उसके पति बाहर आते हैं, तीनों के पास कोई भी उत्तर नहीं है।
कर्नाटक
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