शिव किशोर दीप
ख़ुशी को खुश देखकर मैंने पूछा
आज इतनी खुश क्यों हो
ख़ुशी ने कहा - क्योंकि तुम खुश हो
क्योंकि तुमसे ही तो मैं हूं
बस छिपी हुई या दबी हुई हूं
तुम्हारी महत्वाकांक्षाओं ढेर में
तुम्हारे गुणा भाग के फेर में
तुम इस सच्चाई से आंखें ढकते हो
इसलिए ढूंढते ही रहते हो
तुम ना जगाते हो,ना अवसर देते हो
तुम मेरे अस्तित्व से अज्ञान हो
भूलते हो... तुम मेरी जान हो
जिस दिन मुझे खुद में महसूस कर लोगे
जिंदगी को अपनी मुझसे पूर्ण कर लोगे।
ख़ुशी को खुश देखकर मैंने पूछा
आज इतनी खुश क्यों हो
ख़ुशी ने कहा - क्योंकि तुम खुश हो
क्योंकि तुमसे ही तो मैं हूं
बस छिपी हुई या दबी हुई हूं
तुम्हारी महत्वाकांक्षाओं ढेर में
तुम्हारे गुणा भाग के फेर में
तुम इस सच्चाई से आंखें ढकते हो
इसलिए ढूंढते ही रहते हो
तुम ना जगाते हो,ना अवसर देते हो
तुम मेरे अस्तित्व से अज्ञान हो
भूलते हो... तुम मेरी जान हो
जिस दिन मुझे खुद में महसूस कर लोगे
जिंदगी को अपनी मुझसे पूर्ण कर लोगे।
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