राजकुमार मसखरे
देखो आज इस राजनीति को
कैसे बना गया ये व्यापार जी,
लोक - सेवक अब गायब जो हैं
मिला बड़ा उन्हें रोज़गार जी!
राजनीति अब स्वार्थ- नीति है
कर रहे अपनों का उपकार जी,
कुर्सी में चिपके रहने की लत
बस एक ही इनका आधार जी!
चमचा बनो व जयकारा लगाओ
फलफूल रहा है ये बाज़ार जी,
छुट -भैये नेता पीछे झंडा उठाये
इस धंधे का है ख़ूब पगार जी!
कुछ नहीं करते तो नेता बनो
या नेता के अच्छे चाटुकार जी,
जनता, देश से न कोई मतलब
बस बन तो जाये सरकार जी!
कई पीढ़ियों के भर लिए खजाने
सोना-चांदी है इनका आहार जी,
इन बंगलों में खूब गुलछर्रे उड़ाते
वो वोटर बीच फँसे मझधार जी!
देखो आज इस राजनीति को
कैसे बना गया ये व्यापार जी,
लोक - सेवक अब गायब जो हैं
मिला बड़ा उन्हें रोज़गार जी!
राजनीति अब स्वार्थ- नीति है
कर रहे अपनों का उपकार जी,
कुर्सी में चिपके रहने की लत
बस एक ही इनका आधार जी!
चमचा बनो व जयकारा लगाओ
फलफूल रहा है ये बाज़ार जी,
छुट -भैये नेता पीछे झंडा उठाये
इस धंधे का है ख़ूब पगार जी!
कुछ नहीं करते तो नेता बनो
या नेता के अच्छे चाटुकार जी,
जनता, देश से न कोई मतलब
बस बन तो जाये सरकार जी!
कई पीढ़ियों के भर लिए खजाने
सोना-चांदी है इनका आहार जी,
इन बंगलों में खूब गुलछर्रे उड़ाते
वो वोटर बीच फँसे मझधार जी!
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