राज मंगल ’ राज’
हक के लिए लड़ने का गुनहगार हूँ मैं,
हांक लगाते होठों का जोर जुहार हूं मैं।
बेवक्त पनपी झुर्रियों की कतार से,
खामोशी से गुजर गया, वह गुबार हूँ मैं।
मयखाने बारहा गया गम गलत करने,
ता उम्र जो ना उतरे ए वह खुमार हूं मैं।
वो निगाहों का पानी तैर कर पार करना
डूबते हुए तिनके का कातर पुकार हूँ मैं।
पत्थर में सुराख की बात बेमानी हो गई,
मूरत गढ़ने वालों में अब शुमार हूं मैं।
मंदिर, मठ भटकता रहा मन बावरा,
अन्तस जो बदल डाले वह सुधार हूं मैं।
पंख होते तो भी उड़ना नामुमकिन था,
नटी नियति के खेल में, खुशगवार हूँ मैं।
’ राज’ अम्बर छूने दो नन्हे मृदु हाथों को,
सुबह फूलों पर मिलेगा वह तुषार हूँ मैं।
हक के लिए लड़ने का गुनहगार हूँ मैं,
हांक लगाते होठों का जोर जुहार हूं मैं।
बेवक्त पनपी झुर्रियों की कतार से,
खामोशी से गुजर गया, वह गुबार हूँ मैं।
मयखाने बारहा गया गम गलत करने,
ता उम्र जो ना उतरे ए वह खुमार हूं मैं।
वो निगाहों का पानी तैर कर पार करना
डूबते हुए तिनके का कातर पुकार हूँ मैं।
पत्थर में सुराख की बात बेमानी हो गई,
मूरत गढ़ने वालों में अब शुमार हूं मैं।
मंदिर, मठ भटकता रहा मन बावरा,
अन्तस जो बदल डाले वह सुधार हूं मैं।
पंख होते तो भी उड़ना नामुमकिन था,
नटी नियति के खेल में, खुशगवार हूँ मैं।
’ राज’ अम्बर छूने दो नन्हे मृदु हाथों को,
सुबह फूलों पर मिलेगा वह तुषार हूँ मैं।
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