तुलेश्वर कुमार सेन
आज ये वन है तो हम हैं।
वन हैं तो हमारा जीवन हैं।।
वन से मिलता दाना पानी।
वन से ही सबको पवन हैं।।
क्यों करते हो जी बेईमानी।
जब देखों करते मनमानी।।
अरे क्या नहीं दिया है वन ने।
कैसे बन गए हो अभिमानी।।
छाया,फूल,और मीठे फल।
नदी झरनों का मीठा जल।।
पर्वत,पठार,सागर में भी।
हरदम करता है कल कल।।
जीव जगत में प्राणी जन।
बाग बगीचे या हो उपवन।।
महक उठता हर पल साथी।
जिनसे हमारा ही घर आँगन।।
बादल,वर्षा,धूप,ठंडा वन से।
हीरा,कोयला,तेल,डीजल।।
सब कुछ देता है साथी हमें।
वन से ही होता है दल दल।।
कटाव,बहाव रोक मिट्टी का।
देते जड़ी बूटी और वनस्पति।।
हरा सोना सब कहते जिनको।
हरे हरे तेंदू की होती वह पत्ती।।
आओ हम सब संकल्प लेते हैं।
न काटे बेवजह हरे भरे वन को।।
अपना सब दुख दर्द भूलकर वह।
हरदम खुशियाँ देता जन जन को।।
सलोनी राजनांदगांव
इस अंक के रचनाकार
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मंगलवार, 24 मई 2022
वह है तो हम हैं
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