शीलकांत पाठक
बाहर
चिड़ियें
उछल - कूद
दौड़ - भाग
चीं - चहाट
मचा रही थीं
टहनियों पर
फुदक
रहीं थीं
चहक रहीं थीं
लड़की
काम से
एकांत पा
खिड़की से
टिककर
पूरे
मनोयोग से
देख रही थी
फड़फड़ा
रही थी
उड़
नहीं
पा रही थी
एक चिड़िया भी
उसे
उदास चुप
आंखों से
देख
रही थी
पूछ भी बैठी
पंख कहां छोड़ आई
लड़की!
या
ससुराल में
उड़ना ही
भूल गयी!
बाहर
चिड़ियें
उछल - कूद
दौड़ - भाग
चीं - चहाट
मचा रही थीं
टहनियों पर
फुदक
रहीं थीं
चहक रहीं थीं
लड़की
काम से
एकांत पा
खिड़की से
टिककर
पूरे
मनोयोग से
देख रही थी
फड़फड़ा
रही थी
उड़
नहीं
पा रही थी
एक चिड़िया भी
उसे
उदास चुप
आंखों से
देख
रही थी
पूछ भी बैठी
पंख कहां छोड़ आई
लड़की!
या
ससुराल में
उड़ना ही
भूल गयी!
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