महेंद्र राठौर
मोहब्बत की अपनी सारी हैं अरज़ियां ग़ज़ल में
लिख दी हैं हमने दिल की बेचैनियां ग़ज़ल में
नज़रों के तीर से हम घायल जो हो गये हैं
रखते हैं हम भी ऐ दिल अब बिजलियां ग़ज़ल में
लेती है ज़िंदगी भी हर रोज़ इम्तहां जब
कब तक लिखेंगे बोलो मजबूरियां ग़ज़ल में
हमको रिझाने ख़ातिर जो आपने किया है
दिखती है कुछ शरारत मनमर्ज़ियां ग़ज़ल में
हर मोड़ पे बनते हैं कुछ दोस्त ज़िंदगी में
रखियेगा दोस्ती की कुछ खिड़कियां ग़ज़ल में
जाओगे कहां बचकर इससे ऐ मेरे हमदम
उतरी है जो दुनिया की रंगीनियां ग़ज़ल में
अच्छा है राज़ रखना कुछ बातें मोहब्बत की
तुम कह दो तो कह दूंगा मदहोशियां ग़ज़ल में
तकदीर ज़रा उनकी ये संवर संवर जाती
मिल जाए ग़रीबों को जो रोटियां ग़ज़ल में
इक दूजे के बिना हम इक पल नहीं रह सकते
मिलकर चलो बनायें अब आशियां ग़ज़ल में
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें