रजनीश कांत
अमित जैसे पक्के दोस्त के अचानक बदले व्यवहार ने दिवाकर को हिलाकर रख दिया
था। दिवाकर ने अमित से ऐसी कटुतापूर्ण भाषा की उम्मीद तो क्या, सपने म...अमित
जैसे पक्के दोस्त के अचानक बदले व्यवहार ने दिवाकर को हिलाकर रख दिया था।
दिवाकर ने अमित से ऐसी कटुतापूर्ण भाषा की उम्मीद तो क्या, सपने में भी
कल्पना नहीं की थी। अमित जैसे ही दिवाकर से मुंबई के जुहू बीच पर मिला,
दिवाकर पर उसने आरोपों की झड़ियां लगा दी। पर दिवाकर खामोश रहकर उन आरोपों
को सुनता रहा।
दिवाकर की तरफ से कोई प्रतिक्रिया न मिलता देख अमित
भी चुप हो गया। कुछ देर तक दोनों के बीच किसी तरह की बातचीत नहीं हुई।
माहौल बोझिल सा हो गया था। माहौल को बेहतर बनाने के लिए दिवाकर ने पहल की।
दिवाकर ने अमित से कहा, यार, तुम्हारी समस्या क्या है ?
मुंबई
की फिजा में जहर घुलने लगा था। कभी साथ-साथ खेलने, पढ़ने, मौज-मस्ती करने
वाले मराठी और गैर-मराठी के बीच अब दरार पैदा होने लगी थी। कुछ स्वार्थी
नेताओं की मुहिम रंग लाने लगी थी। दिवाकर सिंह और अमित पटेल जैसे लंगोटिया
यार की दोस्ती को भी नेताओं की मुहिम ने बदरंग कर दिया।
मुंबई के
एक इलाके में दिवाकर सिंह और अमित पाटील साथ-साथ पले-बढ़े और अपने कैरियर
की शुरुआत भी एक साथ ही की। दिवाकर सिंह आज भले ही मुंबईया कहलाते हों,
लेकिन इनकी फैमिली कोई सौ साल पहले ही मुंबई में आकर बस गई थी। अमित पाटील
तो खांटी मराठी ही हैं।
मराठी और गैर-मराठी मुद्दे की वजह से मुंबई
और महाराष्ट्र के कई शहरों का माहौल बदल चुका है। मराठियों में
गैर-मराठियों के खिलाफ यह कहकर घृणा पैदा कर रहे हैं कि गैर-मराठी उनके काम
करने के अवसर को छीन रहे हैं। महाराष्ट्र के लोगों का हक मार रहे हैं।
ऐसा
नहीं है कि इस तरह का झगड़ा कोई आज शुरू हुआ है बल्कि तीस-चालीस सालों से
रह रहकर ऐसी आग जलती रही है। दिवाकर और अमित भी कई बार इस तरह के तमाशों का
गवाह बन चुके हैं लेकिन बचपना और जवानी की दहलीज पर कदम रखते वक्त तक
उनमें आपस में कोई मनमुटाव नहीं हुआ था। वो इन तमाशों को भी आम झगड़ा की ही
तरह देखते थे, लेकिन अब इनमें समझदारी बढ़ने लगी और कुछ नेताओं की मराठी
और गैर-मराठी संबंधी बेलगाम टिप्पणियों ने उनमें भी खटास पैदा करना शुरू कर
दिया।
दिवाकर भी कई बार मराठीविरोधी अभियान के शिकार हुए, हालांकि
वो भी अच्छी मराठी बोल लेते हैं, पूरी तरह से मराठी संस्कृति में रचे-बसे
हैं। दिवाकर ने अपने दर्द को अपने खासमखास दोस्त अमित के सामने बयान किया,
लेकिन इस समय तक अमित में वो भावना जन्म ले चुकी थी जिसने कुछ मराठियों के
मन में गैर-मराठी खासकर बिहार और उत्तर प्रदेश के बाशिंदों के खिलाफ जहर भर
दिया था। अमित भी दिवाकर के दर्द पर मरहम नहीं लगा सका। हालांकि अब तक
दिवाकर भी इस बात को अच्छी तरह से जान चुका था कि इस मामले में अमित से उसे
कोई राहत नहीं मिलने वाली है।
फिर भी उसने साहस करके अमित से एक
सवाल जरूर पूछा… अच्छा अमित, ये बताओ…जब मुंबई में बिहार और दूसरे प्रांत
के लोग आकर जीवन-बसर कर रहे हैं, नौकरियों कर रहे हैं तो फिर जो लोग मुंबई
के रहने वाले है खांटी मराठी हैं, वो क्यों नहीं कर सकते….., क्यों कुछ
नेता उनके लिए स्थानीय नौकरियों में 80 परसेंट तक आरक्षण की मांग करते रहते
हैं। वो क्यों मराठियों में ये दुष्प्रचार करते रहते हैं कि बिहारियों के
कारण उनके काम करने के अवसर खत्म होते जा रहे हैं…..
अमित कुछ पल
चुप रहा…लेकिन दिवाकर को इसका कोई जवाब नहीं मिला। पर, अब सवाल पूछने की
बारी अमित की थी। अमित ने दिवाकर से पूछा… मैं तो तेरे सवाल का जवाब नहीं
दे पाया, लेकिन मुझे तुमसे एक बात पूछनी है… दिवाकर ने कहा, पूछो..अमित ने
कहा, अच्छा दोस्त, ये बताओ, बिहारी के बारे में कहा जाता है कि वो काफी
कड़ी मेहनत करने वाले होते हैं, प्रतिभाशाली होते हैं, बिहार में प्राकृतिक
संसाधनों की भी कोई कमी नहीं है, फिर भी तुम लोग बिहार में काम क्यों नहीं
करते, क्यों नहीं बिहार को एक ऐसा प्रदेश बना देते हो, ताकि बिहारी को
बाहर जाने की नौबत न आए, दूसरे प्रांत के लोगों की गालियां और लाठियां नहीं
खानी पड़े।
दिवाकर के पास भी अमित के इस सवाल का कोई जवाब नहीं
था…… और शायद किसी नेता के पास भी दोनों के सवालों का जवाब मिलना मुश्किल
है… क्योंकि उन्हें मुद्दा चाहिए, इलेक्शन के लिए, सत्ता पाने के लिए… आम
नागरिक की भावना से उन्हें क्या-लेना…खुद बंदुकधारियों की छांव में दिन-रात
रहने वाले इन नेताओं से उम्मीद भी कोई क्या कर सकता है…….
- रजनीश कांत, मुंबई (मोबाइल नंबर-09819481785)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें