स्पर्श
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इतने पास से
गुज़रना हुआ कि
वह एक स्पर्श हो गया
आकाराकृति का नहीं
प्रेमाकर्षण का
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इतने पास से
गुज़रना हुआ कि
वह एक स्पर्श हो गया
आकाराकृति का नहीं
प्रेमाकर्षण का
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फूल खिले, धूप निकली
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बिना समय लिये
गरम हो गयीं हथेलियाँ
गरम हो गया दिल
गरम हो गयी देह
यूँ आयीं
हथेलियों में हथेलियाँ
कड़कड़ाते जाड़े में
सूरजमुखी के
बड़े-बड़े फूल भी खिल गये
धूप भी निकल आयी
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बिना समय लिये
गरम हो गयीं हथेलियाँ
गरम हो गया दिल
गरम हो गयी देह
यूँ आयीं
हथेलियों में हथेलियाँ
कड़कड़ाते जाड़े में
सूरजमुखी के
बड़े-बड़े फूल भी खिल गये
धूप भी निकल आयी
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चमन के चौकीदार
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चौकीदार
चालू तत्वों को
अंदर आने न दें
और ख़ुद भी बाहर रहें
चमन में ताक-झाँक
और चाहतों का उत्पीड़न
न करें !
यह हम कहाँ और किससे कहें ?
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चौकीदार
चालू तत्वों को
अंदर आने न दें
और ख़ुद भी बाहर रहें
चमन में ताक-झाँक
और चाहतों का उत्पीड़न
न करें !
यह हम कहाँ और किससे कहें ?
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प्यार को समझो
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उस तार को समझो
जिसे खींच रहे हो
कहाँ वह टूट सकता है
इस एतबार को समझो
प्यार कब रूठ सकता है
प्यार को समझो
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उस तार को समझो
जिसे खींच रहे हो
कहाँ वह टूट सकता है
इस एतबार को समझो
प्यार कब रूठ सकता है
प्यार को समझो
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चस्का
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आने का समय तय उसका है
फिर भी
बार-बार
आहट लेने का
एक चस्का है
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आने का समय तय उसका है
फिर भी
बार-बार
आहट लेने का
एक चस्का है
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यही उसे बताना है
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भूल क्या सकता हूँ
लेकिन अब मैं उसे याद नहीं करता
वह मिले तो
यही उसे बताना है
कि मुझे प्यार
मिल गया है
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भूल क्या सकता हूँ
लेकिन अब मैं उसे याद नहीं करता
वह मिले तो
यही उसे बताना है
कि मुझे प्यार
मिल गया है
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आख़िरी प्यार
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उम्र भी
कोई चीज़ होती है,
तुम मेरा
आख़िरी प्यार हो
यह और भी ख़ुशगवार हो
और भी !
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उम्र भी
कोई चीज़ होती है,
तुम मेरा
आख़िरी प्यार हो
यह और भी ख़ुशगवार हो
और भी !
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आत्मज्ञान
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जो रूमानी नहीं है
जो जज़्बाती नहीं है
जो अधिक उम्र का नहीं है
वही कहेगा
यह सही इंसान नहीं है
इसको आत्मज्ञान नहीं है
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जो रूमानी नहीं है
जो जज़्बाती नहीं है
जो अधिक उम्र का नहीं है
वही कहेगा
यह सही इंसान नहीं है
इसको आत्मज्ञान नहीं है
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तमन्ना
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क्या प्यारे-प्यारे
फूलों, चिड़ियों,चाँद-सितारों
मौसमों, मधुर यादों और कोमल भावों को
मैं भूल जाऊँगा
शत्रुओं के प्रहारों के मारे ?
प्रहारों से न सही
लेकिन मैं भूलने से बचूँ
और रचूँ
जो मुझे रचना है
यही मेरी तमन्ना है
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क्या प्यारे-प्यारे
फूलों, चिड़ियों,चाँद-सितारों
मौसमों, मधुर यादों और कोमल भावों को
मैं भूल जाऊँगा
शत्रुओं के प्रहारों के मारे ?
प्रहारों से न सही
लेकिन मैं भूलने से बचूँ
और रचूँ
जो मुझे रचना है
यही मेरी तमन्ना है
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एस 2/564 सिकरौल
9415295137
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