प्रिया देवांगन "प्रियू"
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घर म सास-ससुर रमोतिन-तिजऊ घलो जियत रिहिन।
ओखर घर म चमेली के आदमी, सास-ससुर, दू झन बेटा अउ एक झन बहू नेहा रिहिन। अब
नान्हे बेटा राहुल के बिहाव करई बाँचे रिहिस। चमेली अपन अंतस के बात ल
जम्मो करा राखिस त सब्बोझन चमेली ल खिसियाये असन करिस। राहुल के बाबूजी
प्रेमलाल कहिथे- "तोर दिमाग तो सही हे चमेली; काय गोठियात हस, जानत हस ना ?
हम सब सक्छम हन । घर म कुछू जिनिस के कमी नइ हे, अउ आजकल के नवकरी वाली
टूरी मन के पावर जादा रहिथे।" अपन सियनहिन रमोतिन कोती देखत तिजऊ कहिथे-
"समझा तो ओ.... बने अपन बहू चमेली ल। ओखर मति ल काय हर लेहे।"
"बने तो काहत हे चमेली तोर ससुर ह ओ... हमर घर
के नियम-धियम ल देख के नवकरी वाली बहू रह पाही कि नहीं। तोर ससुर ला तो
जानथस न ?" रमोतिन समझाइस।
"पर काय कहिबे,"नारी ले दुनिया हारी"। चमेली जिद्द पकड़ ले रिहिस कि मोर राहुल बर नवकरी वाली बहू लानहू कहिके।
ले दे के सब झन चमेली के बात ला मान के राहुल बर नवकरी वाली
लड़की खोजई सुरु होइस। गाँव के ही एकझन रिस्तेदार ले स्वीटी के बारे मा पता
चलिस। आखिर म पढ़े-लिखे स्वीटी ह महासमुंद ले किरवई म बहू बन के ससुरार
आइस। नवकरी म घलो रिहिस। एकठिन सरकारी आफिस म क्लर्क रिहिस। तिजऊ के
नातीबहू ह नवकरी म हे कहिके किरवई गाँव म सोर होगे। सब झन खुस रिहिन। समय
के चक्का ढुलत रिहिस।
एक दिन राहुल ह अपन कुरिया म खुसुर-फुसुर करत
स्वीटी ल किहिस कि हमर घर म सबझन नियम-धियम वाले आँय। छोटे होय या बड़े सब
के आदर करे बर परथे स्वीटी; अउ हाँ, सियनहा बबा, बूढीदाई, माँ-बाबूजी अउ
बड़े भैया के आगू म तोला हमेसा मुँड़ ढाँके ला परही।
"ओह...हो... राहुल, मेरे को यहाँ आये एक ही दिन
हुआ है, और तुने इतना सारा भाषण सुना डाला।" मुँहू मुरकेटत अँटियाये-अस
किहिस।
"ये भाषण-वाषण नोहे। घर के नियम ला बतावत हँव।"
"अरे यार अब तुम तो कम से कम हिंदी से बात किया
करो। घर के लोग तो देहाती हैं ही। इतना छत्तीसगढ़ी बोलते हैं; बाप रे !!!
मुझे तो समझ ही नहीं आता"।
"हमर घर म अपन पति के नाँव लेवई, मतलब ओखर अपमान करई होथे। घर वाले के सामने मोर नाँव झन लेय कर...अँईं ?"
"ठीक है बाबा ! कोशिश करूँगी।" स्वीटी अपन तरुवा ल धरत कथै।
महीना भर के गेय ले एक दिन बिहनिया बेरा स्वीटी ह
नल म पानी भरत रिहिस त ओखर कुराससुर पारस हर स्वीटी ला देख के खोरोर-खोरोर
खाँसे लागिस। तइहा जमाना के नियय-धियम ल आजकल के बहू-बेटी मन काय पखरा ले
जानही। कुराससुर मन ह बहू के आगू म जाये त खोरोर-खोरोर खाँसैं। खाँसी नइ
आये तभो ले, जानो-मानो टीबी बीमारी होगे हे तइसे ठुरुर-ठारर करथैंच।
पानी भरत स्वीटी ह मुँड़ नइ ढाँके राहै। स्वीटी समझ नइ पाइस, अउ सोचिस कि
खाँसी आवत होही उनला। बने ढंग ले वो समझ नइ पाइस; अउ वो अपने म मस्त
रिहिस। वतकी बेरा स्वीटी के बूढ़ीसास रमोतिन देख परिस। ताहन फेर काय
पुछै.... "मूसर ल बाहना मिलगे"। तानिया-तनिया के रमोतिन चिल्लाये लागिस-
"ये...ओ.... सीटी .... ! ये ओ.... सीटी! अई मुँड़ी ल तो ढांँक ले ओ।
कुराससुर हर ठाढ़े हे। थोरिकिन तो कदर कर ओ...!"
रमोतिन के गोठ ला सुनके स्वीटी के एँड़ी के रीस
तरुवा म चढ़गे- "दादी मेरा नाम स्वीटी है स्वीटी। सीटी नहीं।" सुन के जम्मो
झन हाँस डारिन।
रमोतिन कहिथे- "टार दई...! कइसे-कइसे नाँव राखथे आजकल के दाई-ददा मन घलो।"
"नाम लेने नहीं आता तो मत लिया करो।" कुछ भी
बोलती रहती हो।" कुरबुरावत गुंडीभर मुँड़ म पानी बोहे स्वीटी घर कोती गिस।
नहाखोर के खाइस-पियीस। जल्दी तइयार हो के ऑफिस
निकलिस। ऑफिस म दिनभर ओकर मन अच्छा नइ लागत राहै। राहुल के बेवहार अउ
रमोतिन के गोठ रही-रही सुरता आवत राहै। संझा बेरा पाँच बजे घर मा आइस। आते
साठ मुँह-कान ल धोके खुरसी म हाथ-गोड़ लमा के बइठगे। तिजऊ अउ रमोतिन दूनों
देखते रहिगें। देखत भर ले तिजऊ देखिस। नइ सही गिस। जोर से चिल्लाइस- "ये
काय तरीका ये ओ.... हम सियान मन के आगू म अइसने बइठबे। कुछू लिहाज हे कि
नहीं घर मा ?" सियनहा तिजऊ गोठ सुनके स्वीटी अकबकागे। कलेचुप अपन कुरिया म
चल दिस।
जइसे ही राहुल घर आइस। वोला संझा-बिहनिया के
बात ल बताइस- "मैं थक जाती हूँ। यहाँ कितना नियम मानती रहूँगी और कितना काम
करती रहूँगी। मेरे से नहीं हो पाता।"
"ठीक है; देखता हूँ।" राहुल बिचारा जादा नइ
बोल पाइस। वइसे राहुल घलो स्वीटी ल कुछू बोले के पहिली पन्द्रा घाँव सोंचै।
महतारी चमेली हर तो स्वीटी ल मुँड़ी म चढ़ाके राखबे करे रिहिस। थोरिक बेर के
गेय ले स्वीटी अपन जेठानी नेहा ल कहिथे- "दीदी ! आज मैं खाना नहीं बना
पाऊँगी। बहुत थक गयी हूँ। नेहा ह स्वीटी ल गुर्री-गुर्री देखत हव....
किहिस की वो मेर ले चल दिस, काबर कि वो जानत रिहिस कि नवकरी वाली आय ये
बाईजी ह, येखर रुतबा भारी हे। कुछू कही देहूँ त झगरा हे।" दिनोंदिन ओखर
मनमानी बढ़त रिहिस। घर के सियान मन तंग आगे रिहिन स्वीटी के नखरा ले।
आज बोरसी के बजार राहै। चमेली ल ओखर परोसिन चम्पा
किहिस- "कस ओ चमेली दीदी काय करत हस ? आज तइयार नइ होय हस दीदी बजार जाये
बर। चमेली कहिथे- "बहू स्वीटी आही न ओ चम्पा बहिनी , ताहन ओखरे संग
इस्कूटी म जाहूँ। अब रेंगे ला नइ भाय बहिनी। काय करबे जांगर दिनोंदिन थकत
हे।" रमोतिन के गोठ ल सुनके चम्पा ल हाँसी आगे-"बने हे दीदी तोर बहू ह। तभे
तो हमर पारा-परोस म सबझन काहत रिहिन कि बने हे या... चमेली के बहू हा।"
स्वीटी ऑफिस ले आइस त चमेली कहिथे- "चल ओ....
स्वीटी बजार जाबो। साग-पान नइ हे घर म। तुहीं ल अगोरत रेहेंव इस्कूटी म
लेगही कहिके।" स्वीटी फट ले जवाब दिस - "नहीं मम्मी जी ! मैं नहीं जाऊँगी
बहुत थक गई हूँ।" तभे राहुल ह स्वीटी के गोठ सुन हाँसत कहिथे- "झन जा माँ
येखर संग ओ। गिरा दिही।"
आखिर म स्वीटी अउ चमेली बजार चल दिन। बजार म
चमेली मटक-मटक के रेंगत राहय। छाँट-छाँट के साग-पान लेवन लागय स्वीटी संग
घूम-घूम के। तभे कहिथे कि टार दइ.....ई अब्बड़ चिखला हे।" बजार ले लहुँटत
खानी बादर घुमड़गे। देखते-देखत पानी बरसन लग गे। हुरहा इस्कूटी सिलिप खाके
गिरगे। चमेली बनेच फेंकागे। जम्मो माइलोगिन मन हाँसे लगिन। स्वीटी कहिथे-
"बैठने नहीं आता है तो शौक क्यों करती हो इस्कूटी बैठने का माँ जी।" अब
कइसनो करके घर आइन।
घर आय ले सबझन ल इस्कूटी ले गिरे के बात
चलिस। राहुल हाँसन लागिस- बोले रेहेंव ना स्वीटी गिरा दिही कहिके। अउ सऊँख
करबे माँ इस्कूटी म बइठे के।" अँचरा म आँसू पोछत-पोछत चमेली एकठिन कुरिया म
निंगिस।
एक दिन चमेली के काय जिनिस के बारे म गोठियावत
हुरहा ओखर मुँह ले बुलक परिस- "स्वीटी कुछू काम नइ करय। सब ला बड़े बहू हर
करथे।" ये गोठ स्वीटी के कान म परिस; त बनेच झर्रा दिस स्वीटी अपन सास ला।"
चमेली रोवत-रोवत घर के मुहाटी म चल दिस।
चम्पा कहिथे, का होगे ओ चमेली काबर रोवत हस दीदी। का होगे ओ....। सब हाल ल
चंपा ला बताये लागिस- "का करबे बहिनी, नवकरी वाली बहू लाने हन, बने दुनोझन
कमाहीं ता सुख म रहिबों कर के। मरे बिहान होगे ओ। अब तो अपने गोड़ म घाव
करेंव, तइसे लागथे। बोल देबे ता लइका ऊपर गुस्सा ला उतारथे। दम-दम मार
देथे।" चंपा कहिथे- "का करबे वो दीदी, लोग-लइका के घर मा अइसने ताय, बोल
देबे ता झगरा। सब ला सुनके रहा त बने हे चमेली दीदी। अब अलकरहा समै आगे हे
ओ।" ओखर कारन हमन डोकरी-डोकरा कुछू नइ बोलन। मुंँहू बाँध के रथन कलेचुप।
खाय ल देथे ता खा लेथन ओ दीदी; नहीं ते अपन मन हेर के घलो खा लेथन। कमाये
ला जाथन कर के ताव देखाथे। हमन दूनों डोकरी-डोकरा चुप्पे मुँह लुकाये बइठे
रहिथन।" चमेली मुँड़ी डोलावत कहिथे- "हव बहिनी हव। आजकल के बहू मन बात ल नइ
मानय। सास-ससुर ला खाय ला दे बर छोड़, अपने पेट ला पहिली भरथे। हमर ससुर
मोला टेचरी मारत अब्बड़ खिसियाथे बहिनी, अउ लानबे ओ चमेली नवकरी वाली बहू।
काय करबे चुपचाप सुन लेथन ओ चम्पा; लाने ते हन।"
चंपा अउ चमेली दूनों झन दुख-सुख ला गोठियावत
राहैं। दस-पंदरा दिन के गेय ले एक दिन तो बनेच झगरा मात गे चमेली अउ स्वीटी
मा। स्वीटी आज सुना दिस अपन सास-ससुर ला कि आज के बाद मैं इस घर में नहीं
रहूंँगी। जब देखो नियम; ये करो वो करो। सर पर पल्लू नहीं रहेगा तो बोलेंगे।
बैठ जाओगे तो बोलेंगे। खाना जल्दी खाओगे तो बोलेंगे। घर के बड़ों के सामने
तो बैठना ही मना है। तंग आ गयी हूँ मैं इस घर के सारे नियमों से। स्वीटी अउ
राहुल दूनोझन अपन लइका ल धर के घर ले निकलगे। सब के सब देखत रहिगें।
सास-ससुर के आँखी ले तर-तर तर-तर आँसू बोहाय ला धर लिस। चमेली ह तरुवा ल धर
के बइठगे। अपन-अपन घर के मुँहाटी म बइठे परोसिन मन दाँत गिजोरत काहन
लागैं- "चमेली बाई के नवकरी वाली बहू लाय के सोसी बुझागे।
ही...ही...ही...।"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़
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