राखी देब
तब खुद को पाती हूॅं सिर्फ मैं तन्हा अकेली।
पूछतीं हूॅं खुद से मैं उसका हल,
तो जवाब देती है मुझे मेरी तनहाई।।
दुःख हो या सुख में ये रहती है मेरी सहेली,
साथ नहीं छोड़ती कभी भी जब रहती मैं अकेली।
अपने कसम का वास्ता देकर जाती नहीं दूर,
हमेशा ही रहती हूॅं पास "मैं और मेरी तनहाई"।।
क्या है ये इक पहेली?न जाने ये कैसा है बंधन,
सांसों से सांसों का बंधन रिश्ते और नातों का क्रंदन।
दोनों संग - संग निभाते ऐसा है हमारा बंधन,
ये रिश्ता है अनोखा अनुपम आज बोल रहा है मन।।
दिल को तब चैन आ जाता है,
बातें करती हूॅं जब भी तन्हाई में।
इक है वहीं तो सच्चा रिश्ता अपना,
आज ये मैंने जाना क्या है मेरे लिए मेरी तनहाई।।
"मैं और मेरी तनहाई अक्सर ही बातें करती हूॅं,
मेरे मन का गुबार भी उसी पर निकालती हूॅं।
सदा बेफिक्र रहती हूॅं मैं नहीं करेगी शिकवा मुझसे,
सदा संग रही है और सदा ही रहेगी
" मैं और मेरी तनहाई"।।
चन्दननगर,हुगली,पश्चिम बंगाल
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