सत्यशील राम त्रिपाठी
कहाँ जाएगी ये गंगा नहीं दिखता शिवाला
यहाँ हर साँस छलनी है, पड़े हर जिस्म पर छाले
अमां छालों की दुनिया है कि दुनिया में है छाला
चली जाएगी उस दिन बात भी अंदर की बाहर
कदम घर के अगर बाहर कहीं छोटू निकाला
कफ़न सा ओस भेजा आसमाँ ने जब दिहाड़ी
ठिठुर कर सो गई नंगे बदन धरती की बाला
सितारे, चाँद बादल ओढ़कर सोने चले जब
अंधेरे गाँव में करने लगा जुगनू उजाला
2
पड़े हैं इतने छाले गिर रहे हैं।
अंधेरे में उजाले गिर रहे हैं
तेरे दर से निकाले गिर रहे हैं
हमें झुककर उठा ले गिर रहे हैं
रगों में खून है या सिर्फ पानी
सभी हथियार डाले गिर रहे हैं
उधर शतरंज की पत्ती खुली है
इधर मुँह से निवाले गिर रहे हैं
ज़मीं ने था धुँआ उपहार भेजा
गगन से तीर भाले गिर रहे हैं
सड़क नफ़रत की चौड़ी हो रही है
महल सब प्यार वाले गिर रहे हैं
3
गर नदी से बच गए तो झील तक ले जाएगी
लक्ष्य-कस्तूरी अभी कुछ मील तक ले जाएगी
देह की चाहत में बैठी चील तक ले जाएगी
प्यार है तो प्यार को तहसील तक ले जाएगी
पहले छूएगा तुम्हारा पैर फिर तब देह को
और लालच पायलों से कील तक ले जाएगी
दे मुखौटे पर मुखौटे खुश नहीं पछुआ हवा
कद बढ़ाने के लिए अब हील तक ले जाएगी
जिस्म का हर चित्र लेकर मुम्बई तैयार है
लग रहा है हर रियल को रील तक ले जाएगी
4
भले खोटा हो सिक्का चाहिए था
हमें हिस्सा हमारा चाहिए था
मुहब्बत ने मुझे जीरो दिया है
मुझे तो सौ से ज्यादा चाहिए था
अभी है देवता नाराज मेरा
कहीं से फूल ताजा चाहिए था
बहुत कमजोर सेहत कह रही है
दवा का लाभ होना चाहिए था
अधूरा चाँद हो तुमको मुबारक
हमें तो चाँद पूरा चाहिए था
हुई पैदा कई बेटों की माँ है
हमें तो सिर्फ बेटा चाहिए था
5न बजती बाँसुरी, घुंघरु, कहीं कत्थक नहीं होता
दिलों के बीच में यदि प्रेम का चुम्बक नहीं होता
हवा का डाकिया लेकर हमारा खत पहुँच जाता
तुम्हारे खिड़कियों के साथ गर फाटक नहीं होता
तुम्हारे शहर में पब-पार्टियों का ख़ूब जलवा है
हमारे गाँव में ये काम तो अबतक नहीं होता
सुरक्षा के लिए अपनी जहर कुछ साँप रखते हैं
लिए हाथों में तलवारें कोई घातक नहीं होता
किसी को देखते विश्वास कर लेना नहीं प्यारे
उठाए चोंच हर पंछी कभी चातक नहीं होता
मोहब्बत ख़ुद-ब-खुद राहें बना लेती है ऐ "सत्या"
नदी के पास कोई भी दिशासूचक नहीं होता
ग्राम रुद्रपुर पोस्ट खजनी जिला गोरखपुर पिन कोड 273212
मोबाइल 6386578871
गोरखपुर विश्वविद्यालय से परास्नातक
देश के विभिन्न पत्रिकाओं एवं साझा संकलन में दोहे एवं ग़ज़लों का प्रकाशन
दूरदर्शन एवं आकाशवाणी से काव्यपाठ
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें