डॉ अनिल जैन उपहार
वो रिश्तों के रंगमंच का ।
जीवन के सुख दुःख
देखे थे बहुत करीब से उसने ।
एक शिल्पी सा तराशना चाहता था वो
अनछुए पहलुओं कों ।
बनाना चाहता था
पत्थर को भी भगवान ।
उसकी बातों में था
अज़ीब सा सम्मोहन
सादगी और लावण्य का
पर्याय थी उसकी विनम्रता ।
अचानक आई वक़्त की
तेज आंधी ने
नफरत की ऐसी दिवार खड़ी करदी
जिसने सारे तिलिस्म कों
झकझोर कर रख दिया ।
किसी और दुनियां से आया
वो किरदार
गुमनाम बस्ती में कहीं खो गया
शायद फिर से लौट आए वो शिल्पी
और तराश जाये पत्थर को
भगवान की तरह ............,
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