कमल कपूर
अभी भोर की पहली चिरैया भी न चहकी थी कि उनके मोबाइल की कोयलिया कुहुक
उठी । बोस्टन से अनुपम का फ़ोन था। कैसा मीठे दूध की गागर सा छलछलाता
उमगता स्वर था उसका कि उनके मन-अंतर्मन दोनों ही सरसा उठे।
…”
बधाई हो मम्मा ! आप दादी बन गईं ! गुड़िया आई है…अभी थे देर पहले ही ।”
“ तुम्हें भी लाख-लाख बधाइयाँ बेटा ! पापा बन गए हो तुम । अवनि और गुड़िया ठीक हैं न ?” भीगे कंठ से कहा माँ ने !
“ जी मम्मा ! बिल्कुल ठीक हैं । अभी ओ.टी. में ही हैं माँ-बेटी । रूम
में शिफ़्ट करने की कैयारी चल रही है । रूम में जाने के बाद आपको फ़ोन करता
ह मम्मा ।”
सामने दीवार पर टंगे दुर्गा माँ के चित्र के समक्ष हाथ जोड़ते हुए वह
बोलीं ,” मैं धन्य हुई माँ ! आप कन्या रूप में मेरे घर बिराजीं ।”
दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर उन्होंने खूब सारे खुश्क मेवे डालकर
सूजी का हलवा बनाया और सोचने लगीं,’ सूर्य देवता के आते ही , आसपास के सब
आत्मीय घरों में ख़ुशख़बरी के साथ बाँट आएँगी ,’ कि फ़िल्म मोबाइल घनघना
उठा । अनु ही था ,”लो जी मम्मा ! आ गए कमरे में ।”
“ अवनि ख़ुश है न बेटा ? “
“ बहुत ज़्यादा…मम्मा ! बेबी को देखकर तो ख़ुशी से ऑंखें छलक आईं उसकी
और वह कहने लगी , ‘ पता है अनु ! बेबी जब मेरी टमी में थी तो मुझे सपना
आया था कि मुझे बेटा हुआ है और मम्मा कान्हा-कान्हा कहकर उसे दुलरा रही हैं
। मैंने जब मम्मा को अपना सपना बताया तो उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा था
…’ तुम जब मेरी गोदी म मेरा कान्हा डालोगी न अवि ! तो मैं तुम्हें सोने के
जड़ाऊ कंगन पहनाऊँगी,’ पर अब तो गुड़िया आ गई । मम्मा को अच्छा नहीं लगेगा
न ?’ मामा ! इस विषय में आप क्या कहेंगी?”
माँ मुस्कुराईं , “ बेटा ! उससे कहना कि वह बेटा चाहती होगी , तभी उसे
वैसा सपना आया था पर मैं तो राधिका चाहती थी और वह आ गई । अब जब वह मेरी
राधिका को मेरी झोली में डालेगी तो मैं उसे सिर्फ़ सोने के कंगन ही नहीं…और
भी जो कुछ वह चाहेगी, लेकर दूँगी ।”
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