कमल कपूर
‘ स्मृति पार्क ‘ के लंबे-चौड़े ‘ वॉकिंग -ट्रैक ‘ के चार चक्कर
लगाकर…थककर सुस्ताने के लिए बैंच पर बैठी ही थी बेला कि उसकी नज़रों को
बांध लिया , सामने से चली आ रही एक नैनाभिराम सी वृद्ध जोड़ी ने । वृद्ध
सज्जन सफ़ेद-नीले ‘ ट्रैकसूट ‘ में थे और अपनी सुदर्शना वृद्धा पत्नी का
हाथ थामे संभल-लंभलकर पग धर रहे थे । लाल पाड़ की़ श्वेत साड़ी पहने थी वह
वृद्धा । उनके गोरे ललाट पर चवन्नी के आकार की सुर्ख़ बिंदिया दमक रही थी
और धवल रेशमी बालों के बीच चटक सिंदूरी रेखा खिंची हुई थी ।उन्हें मुग्ध
दृष्टि से निहारते हुए बेला ने सोचा , ‘ हे प्रभु ! मुझे बुढ़ापा देना तो
इतना ही सुंदर देना , नहीं तो न ही देना।’
वे कुछ देर टहलकर छोटे-छोटे कदम रखते हुए पास आए और बेला की बग़ल वाली
बैंच पर बैठ गए । पति ने अपनी जेब से रुमाल निकालकर पत्नी के माथे का पसीना
पौंछा और बॉस्केट से एक पानी की बॉटल निकालकर उसके हाथ में थमा दी । बेला
के कनखियों के प्रहरी सजग हो गए और कर्णद्वय सतर्क । वे दोनों अब अपने
विदेश में बसे बच्चों की बातें कर रहे थे और स्मार्ट फ़ोन पर पोते -पोतियों
की तस्वीरों देख-कर ख़ुश हो रहे थे…हँस रहे थे । सहसा वृद्ध सज्जन खाँसने
लगे तो पत्नी ने तुरंत अपना पर्स खोला और एक गोली निकालकर , पानी की बॉटल
के साथ उनके हाथ में थमा दी , एक मीठी फटकार के साथ,” मना किया था न आपको
कि ना खाओ तीखी चाट-पकौड़ी पर आप तो…अरे कितनी बार समझाया है कि अपनी उम्र
देखकर खाया-पिया करें पर नहीं…”
“ सॉरी बेगम ,” इतना भर कहा उन्होंने …हाथ जोड़कर । बेला के नयन भी नम
हो गए और मन भी । इन कुछ पलों में ही , वह समझ गई थी कि ये वो दो बूढ़े
पाखी हैं, जिनके चुरुगन पंखों में प्राण पड़ते ही , उड़कर सात समंदर पार जा
बसे हैं और ये कसकर एक-दूसरे का हाथ थामे…एक-दूसरे को सँभाले एक …प्यारी
सी सौम्य-संतुष्ट ज़िन्दगी जी रहे हैं…मिठास से बच्चों के याद करते
हुए…बिना किसी शिकवे-शिकायत के ।
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कमल कपूर
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