गोवर्धन दास बिन्नाणी ' राजा बाबू '
यह सर्वविदित तथ्य है कि शिक्षा से ज्ञान प्राप्ति होती है । यही ज्ञान वर्द्धन व्यक्ति के व्यक्तित्व को निखार देता है यानि ज्ञान से ही सर्वांगीण विकास सम्भव है। यहाँ सर्वांगीण विकास से मतलब विनय, पात्रता, धन,धर्म व सुख सभी कुछ। और यही सारे तथ्य बहुत पहले ही हमारे पूर्वजों ने निम्न श्लोक के माध्यम से हम सभी को समझा दिया थाः
विद्यां ददाति विनयं, विनयाद् याति पात्रताम्।
पात्रत्वात् धनमाप्नोति, धनात् धर्मं ततः सुखम्॥
हितोपदेश,श्लोक 6
इसलिये ही हमारे जीवन में शिक्षकों का जो योगदन है,वह भुलाया नहीं जा सकता। आज मैं जब अतीत में झाँकता हूँ, तो पाता हूँ सबसे पहले मेरी माँ ने गणेशचतुर्थी को सर्वप्रथम प्रभु श्रीगणेशजी की पूजा करायी और उसके बाद मेरी पाटी - स्लेट, की पूजा ही नहीं करवायी बल्कि बरते जिससे स्लेट पर लिखा जा सकता है , से पाटी पर मेरा हाथ पकड़ एक अक्षर लिखवाया। उसके बाद हमारे लिये नियुक्त मारजा ’ शिक्षक’ आ गये और उनके साथ उनके विद्यालय गया। इस तरह विद्यार्थी जीवन की शुरूआती पढ़ाई मारजा ’ शिक्षक’ के स्कूल से हुई जहाँ मारजा ने हम सभी को पहाड़ा, जो गणित का एक अहम् हिस्सा होता है,खूब बढ़िया ढंग से कंठस्थ करवा दिया। मारजा वाला विद्यालय छोड़ने से पहले ही हम सभी विद्यार्थियों को मारजा ने बड़े ही प्रेम से निम्न श्लोक अर्थ सहित अनेकों बार खूब बढ़िया ढंग से समझाया, जिसका लाभ मुझे तो पूरे विद्यार्थी जीवन में मिला। यानि आज हम उसकी महत्ता का जो बखान कर पा रहे हैं,यह उसी खूब बढ़िया ढंग से समझाने का ही परिणाम है।
काक चेष्टा बको ध्यानं, श्वान निद्रा तथैव च।
अल्पहारी गृह त्यागी, विद्यार्थी पंच लक्षणं॥
इसके बाद मैं उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में कक्षा ग्यारह तक पढ़ा। जहाँ अनेकों शिक्षकों ने अलग अलग विषयों पर पढ़ाया लेकिन उन सभी शिक्षकों से न तो सम्पर्क रहा और न ही ज्यादा कुछ याद है। इसका यह मतलब कदापि नहीं है कि मैं मेरे व्यक्तित्व को निखारने में उनके योगदान को नकार रहा हूँ । इसी बीच मैं याद कर रहा हूँ हमारे घर पर हमारी पढ़ाई पर निगरानी हेतु नियुक्त एक शिक्षक को जो कक्षा एक से ही आ रहे थे और वो कक्षा सात तक तो रहे बाद में उनका स्थानांतरण हो जाने से उनको जाना पड़ गया। उनसे भी मैनें बहुत कुछ सीखा।
इसके बाद जब कॉलेज में दाखिला लिया तब दाखिला के समय ही कॉलेज प्राचार्यजी ने सोच समझकर मुझे न केवल ऑनर्स में दाखिला दिया बल्कि तीन साल बाद ऑनर्स विषयों पर सब तरह से विशेष ध्यान दिया । ऐसा मैं इसलिये लिख रहा हूँ कि उन्होनें एक अवकाश प्राप्त आयकर अधिकारी को विशेष रूप से रविवार न केवल आय कर बल्कि श्रम कर पढ़ाने हेतु नियुक्त कर हमें बहुत ही बढ़िया तरीके से इन विषयों को पढ़ने के लिये प्रोत्साहित किया। इस तरह चार सालों में उनके मार्गदर्शन ने मेरे में जो आत्मविश्वाश भरा,वह आज तक सहायक है। इसलिये मैं चाहकर भी उनके योगदान को भूल नहीं सकता।
स्नातक वाली पढ़ाई पश्चात मेरी बिरला के शेयर डिपार्टमेन्ट में नौकरी लग गयी। वहीं विभागाध्यक्षजी ने मुझे समझा दिया कि कड़ी मेहनत व सीखने की ललक रखना क्योंकि तुम्हें सैद्धांतिक ज्ञान तो है लेकिन जिन्दगी में सफल होने के लिये सैद्धांतिक ज्ञान के साथ साथ व्यावहारिक ज्ञान जरूरी होता है । हमेशा श्रद्धावान् लभते ज्ञान सूक्ति अनुसार व्यवहार रखना यानि नम्रता रख एक छात्र की तरह सिखाने वाले के साथ व्यवहार करोगे तभी सही सीख पावोगे।
इस सीख की पालना के कारण न केवल शेयर डिपार्टमेन्ट में बल्कि आगे भी अन्य डिपार्टमेंटों में भी मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला। इसी बीच बिरला में नौकरी करते हुये मैंने रात्रि कक्षा में शामिल हो एक कम्प्यूटर वाली पढ़ाई भी पूरी कर ली। उसके बाद मुझे लेखा विभाग में भेज दिया और वहाँ मैंने रोकड़िया वाला काम संभाला जहाँ मुझे व्यावहारिक अनुभव तो बहुत हुआ ही साथ ही साथ अनेक साथियों से प्रागढ़ता भी हुई। कुछ ही सालों में फिर मुझे लेखापाल बना दिया। लेकिन लेखापाल बनाते ही मुझे एक एक कर सारे विभागों में सभी तरह की कार्यप्रणाली को समझ लेने के लिये भेजा गया और उसके बाद मैंने लेखापाल का कार्य संभाला। यह सब लिखने का तात्पर्य यही है कि इस पूरे समय में मुझे अनेकों साथियों व अधिकारियों ने बहुत कुछ सिखाया क्योंकि बिरला के यहाँ एक शिक्षक की तरह ही अधिकारी व्यावहारिक ज्ञान सिखा फिर निर्धारित कार्य सम्भालने का अधिकार देते हैं। इसलिये शेयर डिपार्टमेन्ट से लेकर लेखापाल तक के सफर में जिन्होनें भी मेरे व्यक्तित्व को निखारने में योगदान दिया उनको मैं चाहकर भी भूल नहीं सकता। उनके योगदान बिना मेरी सफलता कैसे सम्भव हो सकती थी।
अन्त में यही बताना चाहता हूँ कि अभी तक अनेकों से बहुत कुछ सीखा ही नहीं है, बल्कि अब तक सीख ही रहा हूँ क्योंकि मेरा मानना है कि ज्ञान - दाता अपने से श्रेष्ठ व्यक्ति होता है और सैद्धांतिक ज्ञान से ज्यादा महत्वपूर्ण होता है व्यावहारिक ज्ञान अनुभव। इस कारण वेदांत दर्शन,अद्वैतवाद के संस्थापक महर्षि वेदव्यासजी ने : गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुर्गुरुर्देवो महेश्वरः । गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः॥ श्लोक के माध्यम से जो समझाया है उसी की पालना करते हुये मैं आज उन सभी का अंतर्हृदय से आभार प्रकट करता हूँ जिनके चलते मेरे व्यक्तित्व में निखार आया।
बीकानेर
7976870397,9829129011
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