संयोजक - डॉ. प्रशांत झा
दिनाँक 31/07/2022 दिन रविवार को प्रेमचंद जयंती के अवसर पर छत्तीसगढ़ प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन की पाठक मंच खैरागढ़ के तत्वावधान में " प्रेमचंद को याद करते हुए 'विषय पर परिचर्चा सम्पन्न हुई ।
परिचर्चा में डॉ. वीरेन्द्र मोहन ने कहा कि मूलतः उर्दू के लेखक थे। 1905 के आसपास डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी जी का हिन्दी आन्दोलन चल रहा था , उनसे प्रेमचंद जी का पत्र व्यवहार था , पत्र व्यवहार और सम्पर्क के कारण हिन्दी में आए। वे केवल कथाकार ही नहीं,सतत् वैश्विक दृष्टि वाले पत्रकार थे । उनकी रचनाओं की धुरी राष्ट्र और हासिए का समाज है ,जो नवजागरण का विस्तार करता है । स्वाधीनता आंदोलन में उनका योगदान रचना के स्तर पर था । उस समय उपनिवेशवाद तो था ही, फासीवाद भी उभार पर था । चर्चिल को पत्र-पत्रिका के माध्यम से प्रतिकार करते हैं-' संसार में जो कुछ हो रहा है उससे प्रभावित हुए बिना भारत नहीं रह सकता।' इस तरह स्वाधीनता आंदोलन में उनका योगदान रचना के स्तर पर था । विखंडन-विस्थापन की बुनियाद उसी समय की है । अंग्रेजों के भी मजदूर को मजदूर से लड़वाया जाता था । यह जड़ों को खोखला कर रहा है । भविष्य के इन खतरों को प्रेमचंद की रचनाओं में पाते हैं । आज भी यही हो रहा है क्योंकि सत्ता का चरित्र यही है और यह पूंजी कमाने और उसकी सनक से पैदा होती है ,और जब यह सनक बढ़ जाती है तो पूंजीपति सत्ता को नियंत्रित करते हैं । इस हम आज के परिवेश में भी देख सकते हैं । इस तरह की तमाम असमानता की चिंता को प्रेमचंद जी रचनाओं में व्यक्त हुआ देखते हैं।
डॉ.जीवन यदु ने कहा कि कोई भी रचनाकार इतिहासकार नहीं है तो वह सफल रचनाकार नहीं हो सकता । प्रेमचंद जी की रचनाएं उस कालखंड की शिलालेख है । उस काल को जानने -समझने के लिए प्रेमचंद जी को पढ़ते हैं।आगे कहा कि गाँधीवादी दर्शन कि सरल भाष्य प्रेमचंद की रचनाएं हैं । श्री विनयशरण सिंह ने कहा कि प्रेमचंद जी को याद करते हैं तो सही मायने में साहित्य की आवश्यकता महसूस होती है । ग्रामीण समाज, किसान-समस्या, राष्ट्रीय के स्वर और मनुष्यता का पुजारी आदि हम प्रेमचंद की रचनाओं में पाते हैं ।
श्री टी.के.चंदेल ने कहा कि प्रेमचंद जी को याद करते हैं तो ग्रामीण परिवेश को पाते हैं और अपने आसपास को पाते हैं। डॉ.प्रशांत झा ने कहा कि उन्हें याद करते हुए तब का और अब का ,पूरे मानव समाज को देखना होता है । उनके समय अंग्रेज बहादुर कम्पनी ही थी,आज तो कम्पनी-कम्पनी है। इसे देखते हुए लगता है कि व्यवस्था चाहे जो भी हो ,प्रेमचंद जी याद आते रहेंगे।
श्री यशपाल जंघेल ने कहा कि प्रेमचंद जी को याद करते हैं तो लगता है कि उन्हें पढना कितना जरूरी है।आज इसलिए प्रासंगिक है क्योंकि यंत्र बदल गए हैं,पर तंत्र है । श्री संकल्प यदु ने कहा कि प्रेमचंद जी को याद करते हैं तो भारत का स्वरूप याद आता है । हम अपने बारे सोचते हैं क्योंकि उनके पात्र में हमारा आसपास जीवित हो उठता है। उनको पढ़ते हुए हम अपने आप को अकेला नहीं पाते,बल्कि अपना विस्तार पाते हैं।
श्री अनुराग तुरे ने कहा कि प्रेमचंद जी को याद करते हैं तो उनके विचार याद आते हैं और विचारों से जीवन चलता है। इस तरह वे समसामयिक और प्रासंगिक बने हैं । श्री विप्लव साहू ने कहा कि वे आधुनिक काल के युगपुरुष की तरह याद आते हैं । भारतीय जनमानस की बातों को उनकी रचनाओं में पाते हैं। जितना उनको पढ़ते हैं ,उतनी ही समाज की परतें खुलती है । श्री रवि यादव ने कहा कि उनको याद करते हैं तो लगता है कि वे तीसरे नेत्र वाले व्यक्ति थे जिनका तीसरा नेत्र खुल चुका था । श्री बलराम यादव ने कहा कि प्रेमचंद जी शोषित वर्ग के पक्षधर के रूप में याद आते हैं ।
इस आयोजन में श्री सुविमल श्रीवास्तव , श्री दूजराम साहू ने अपनी उपस्थिति दी । कार्यक्रम का संचालन डॉ. प्रशांत झा और श्री संकल्प यदु ने आभार प्रदर्शन किया ।
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