अंकुर सिंह
गजानन महाराज
शिक्षक
प्रणाम उस मानुष तन को,
शिक्षा जिससे हमने पाया।
माता पिता के बाद हमपर,
उनकी है प्रेम मधुर छाया।।
नमन करता उन गुरुवर को,
शिक्षा दें मुझे सफल बनाए।।
अच्छे बुरे का फर्क बता,
उन्नति का सफल राह दिखाए।।
शिक्षक अध्यापक गुरु जैसें,
नाम अनेकों मानुष तन के,
कभी भय, कभी प्यार जता,
हमें जीवन की राह दिखाते।।
कभी भय, कभी फटकार कर,
कुम्हार भांति रोज़ पकाते।
लगन और अथक मेहनत से,
शिक्षक हमें सर्वश्रेष्ठ बनाते।
कहलाते है शिक्षक जग में,
ब्रह्मा, विष्णु, महेश से महान।
मिली शिक्षक से शिक्षा हमें
जग में दिलाती खूब सम्मान।।
शिक्षा बिना तो मानव जीवन,
दुर्गम, पीड़ित और बेकार।
गुरुवर ने हमें शिक्षा देकर,
हमपर कर दी बहुत उपकार।।
अपने शिष्य को सफल देख,
प्रफुल्लित होता शिक्षक मन।
अपने गुणिजन गुरुवर को मैं,
अर्पित करता श्रद्धा सुमन।।
हिंदी बने राष्ट्रभाषा
हमारा हो निज भाषा पर अधिकार,
प्रयोग हिंदी का, करें इसका विस्तार।
निज भाषा निज उन्नति का कारक,
निज भाषा से मिटे सभी का अंधकार।।
हिंदी है हिंदुस्तान की रानी,
हो रही अब सभी से बेगानी।
अन्य भाषा संग, हिंदी अपनाओ,
ताकि हिंदी संग ना हो बेमानी।।
माथे की शोभा बढ़ाती बिंदी,
निज भाषा जान है हिन्दी।
आओं इसका विस्तार करें,
ताकि करें गर्व नई आबादी।।
हिंदी हैं हम सब की मातृभाषा,
भाद्र शुक्ल की चतुर्दशी,
मनत है गणपति त्योहार।
सवारी प्रभु का मूषक डिंक
मोदक उनका प्रिय आहार ।।
उमा सुत है प्रथम पूज्य,
प्रभु गजानन महाराज।
ऋद्धि सिद्धि संग पधार,
पूर्ण करो मेरे सब काज।
मोदक संग चढ़े जिन्हे,
दूर्वा, शमी, पुष्प लाल।
हे लंबोदर ! सिद्धिविनायक !
आए हरो मेरे सब काल।।
हे ऋद्धि, सिद्धि के दायक,
हे एकदंत ! हे विनायक !
गणेश उत्सव पर पधार,
बनो हमरे सदा सहायक।।
बप्पा गणपति पूजा हेतु,
दस दिवस को आए ।
पधार पुत्र शुभ लाभ संग,
सारी खुशियां संग लाए।।
फूल, चंदन संग अक्षत, रोली,
लिए हाथ जोड़ करते वंदन।
हे गणाध्यक्ष!, हे शिवनंदन !,
स्वीकार करो मेरा अभिनन्दन।।
प्रणाम उस मानुष तन को,
शिक्षा जिससे हमने पाया।
माता पिता के बाद हमपर,
उनकी है प्रेम मधुर छाया।।
नमन करता उन गुरुवर को,
शिक्षा दें मुझे सफल बनाए।।
अच्छे बुरे का फर्क बता,
उन्नति का सफल राह दिखाए।।
शिक्षक अध्यापक गुरु जैसें,
नाम अनेकों मानुष तन के,
कभी भय, कभी प्यार जता,
हमें जीवन की राह दिखाते।।
कभी भय, कभी फटकार कर,
कुम्हार भांति रोज़ पकाते।
लगन और अथक मेहनत से,
शिक्षक हमें सर्वश्रेष्ठ बनाते।
कहलाते है शिक्षक जग में,
ब्रह्मा, विष्णु, महेश से महान।
मिली शिक्षक से शिक्षा हमें
जग में दिलाती खूब सम्मान।।
शिक्षा बिना तो मानव जीवन,
दुर्गम, पीड़ित और बेकार।
गुरुवर ने हमें शिक्षा देकर,
हमपर कर दी बहुत उपकार।।
अपने शिष्य को सफल देख,
प्रफुल्लित होता शिक्षक मन।
अपने गुणिजन गुरुवर को मैं,
अर्पित करता श्रद्धा सुमन।।
हिंदी बने राष्ट्रभाषा
हमारा हो निज भाषा पर अधिकार,
प्रयोग हिंदी का, करें इसका विस्तार।
निज भाषा निज उन्नति का कारक,
निज भाषा से मिटे सभी का अंधकार।।
हिंदी है हिंदुस्तान की रानी,
हो रही अब सभी से बेगानी।
अन्य भाषा संग, हिंदी अपनाओ,
ताकि हिंदी संग ना हो बेमानी।।
माथे की शोभा बढ़ाती बिंदी,
निज भाषा जान है हिन्दी।
आओं इसका विस्तार करें,
ताकि करें गर्व नई आबादी।।
हिंदी हैं हम सब की मातृभाषा,
छोड़ इसे ना करो तुम निराशा।
हिंदी बोलने पे तुम मत शरमाओ,
ताकि हिंदी बने हमारी राष्ट्रभाषा।।
हिंदी हैं अपनी राजभाषा,
बनाना इसे अब राष्ट्रभाषा।
हम निज भाषा से प्यार करें
ताकि इसे ना मिले निराशा।।
महात्मा गांधी जी कहते थे,
हिंदी है जनमानस की भाषा ।
बापू ने कहा उन्नीस सौ अठारह में,
बनाओ सब हिंदी को राष्ट्रभाषा।।
पहली अंग्रेजी, फिर चीनी,
ज्यादा बोले जाने वाली है भाषा।
हर कार्य में हिंदी को अपनाकर,
बनाओं इसको सब पहली भाषा।
हिंदी बोलने पे तुम मत शरमाओ,
ताकि हिंदी बने हमारी राष्ट्रभाषा।।
हिंदी हैं अपनी राजभाषा,
बनाना इसे अब राष्ट्रभाषा।
हम निज भाषा से प्यार करें
ताकि इसे ना मिले निराशा।।
महात्मा गांधी जी कहते थे,
हिंदी है जनमानस की भाषा ।
बापू ने कहा उन्नीस सौ अठारह में,
बनाओ सब हिंदी को राष्ट्रभाषा।।
पहली अंग्रेजी, फिर चीनी,
ज्यादा बोले जाने वाली है भाषा।
हर कार्य में हिंदी को अपनाकर,
बनाओं इसको सब पहली भाषा।
विश्वकर्मा भगवान
तकनीकी कला के ज्ञाता,
देवालय, शिवालय के विज्ञाता।
सत्रह सितम्बर हैं जन्म दिवस,
कहलाते शिल्पकला के प्रज्ञाता।।
कला कौशल में निपुण,
बनाए सोने की लंका,
विश्वकर्मा भगवान तो है,
सभी देवों के अभियंता।।
शिल्प कला के है जो ज्ञाता,
विष्णु वैकुंठ के हैं निर्माता।
कहते हम प्रभु दो हमको ज्ञान,
क्योंकि हमें कुछ भी नहीं आता।।
पृथ्वी, स्वर्ग लोक के भवन बनाए,
विष्णु चक्र, शिव त्रिशूल तुम्हीं से पाए।
किए सब देवन पर कृपा भारी,
पुष्पक दें कुबेर को किए विमान धारी।।
इंद्रपुरी, कुबेरपुरी और यमपूरी बनाए,
द्वारिका बसा कृष्ण के प्रिय कहलाएं ।
तुम्हारे बनाए कुंडल को धारण कर,
दानी कर्ण कुंडल धारक कहलाए ।।
विश्वकर्मा जी है पंच मुखधारी
करते है हंस की सवारी,
तीनों लोक, चौदहों भुवन में,
सब करते उनकी जय जयकारी।।
मनु, मय, त्वष्ठा, शिल्पी, दैवज्ञा पुत्र तुम्हारे,
पधार संग इनके प्रभु आज द्वार हमारे ।
महर्षि प्रभास, देवी वरस्त्री के सुत आप,
आए हरो प्रभु अब, कष्ट सब हमारे।।
हरदासीपुर, चंदवक,
जौनपुर, उत्तर प्रदेश- 222129
मोबाइल नंबर - 8367782654.
व्हाट्सअप नंबर - 8792257267.
तकनीकी कला के ज्ञाता,
देवालय, शिवालय के विज्ञाता।
सत्रह सितम्बर हैं जन्म दिवस,
कहलाते शिल्पकला के प्रज्ञाता।।
कला कौशल में निपुण,
बनाए सोने की लंका,
विश्वकर्मा भगवान तो है,
सभी देवों के अभियंता।।
शिल्प कला के है जो ज्ञाता,
विष्णु वैकुंठ के हैं निर्माता।
कहते हम प्रभु दो हमको ज्ञान,
क्योंकि हमें कुछ भी नहीं आता।।
पृथ्वी, स्वर्ग लोक के भवन बनाए,
विष्णु चक्र, शिव त्रिशूल तुम्हीं से पाए।
किए सब देवन पर कृपा भारी,
पुष्पक दें कुबेर को किए विमान धारी।।
इंद्रपुरी, कुबेरपुरी और यमपूरी बनाए,
द्वारिका बसा कृष्ण के प्रिय कहलाएं ।
तुम्हारे बनाए कुंडल को धारण कर,
दानी कर्ण कुंडल धारक कहलाए ।।
विश्वकर्मा जी है पंच मुखधारी
करते है हंस की सवारी,
तीनों लोक, चौदहों भुवन में,
सब करते उनकी जय जयकारी।।
मनु, मय, त्वष्ठा, शिल्पी, दैवज्ञा पुत्र तुम्हारे,
पधार संग इनके प्रभु आज द्वार हमारे ।
महर्षि प्रभास, देवी वरस्त्री के सुत आप,
आए हरो प्रभु अब, कष्ट सब हमारे।।
हरदासीपुर, चंदवक,
जौनपुर, उत्तर प्रदेश- 222129
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