नेतराम भारती
दिवाकर, दिवाकर का बीस वर्षीय बेटा अंशु और कार ट्रेनर रतनलाल तीनों, कार
में बैठकर कॉलोनी के बाहर एक बड़े - खुले से मैदान में आ गये , जहाँ पहले
से ही और भी लोग कार-स्कूटर चलाना सीख रहे थे l
"आओ
भइया! ड्राइविंग सीट पर बैठो और ध्यान से सुनो l धीरे-धीरे क्लच छोड़ना है
और रेस देनी है, ऐसे, ठीक है? और ये गियर है l ये एक, ये दो, ये तीन, ये
चार और यूँ राईट करके डाउन पाँच, समझ गये! गियर हमेशा क्लच दबाकर ही बदलना
है, बात समझ में आ गई न?, तो आओ I " रतनलाल साथ वाली, दिवाकर पीछे और अंशु ड्राइविंग सीट पर बैठ गये l
"
पहले स्टियरिंग छूकर भगवान का नाम लो अंशु!, और देखो, सामने नज़र रखनी है,
डरना बिल्कुल नहीं है, धीरे-धीरे चलाना है, एकदम से रेस नहीं देनी है, ठीक
है! लगाओ चाबी, जय श्रीकृष्णा! " दिवाकर ने कहा l
अंशु ने चाबी लगाई और जैसे ही फर्स्ट गियर लगाकर रेस छोड़ी तो क्लच नहीं
छूटा, गाड़ी ज़ोर से घरघराई l और जब क्लच छोड़ता तो रेस नहीं छूटती l मतलब
दोनों में असंतुलन l पीछे से पिता की अनवरत सलाहें सो अलग l एक बार तो
घबराकर क्लच और रेस एकसाथ छोड़ दिए तो गाड़ी उछल पड़ी l
"
क्या कर रहे हो अंशु! एक्सीडेंट करवावोगे क्या? जैसे समझाया है वैसे करो न
l एक काम करो, ऐसे करो कि धीरे-धीरे क्लच छोड़ो और धीरे-धीरे ही रेस दो l"
"सर!
आप क्या नया बता रहे हैं जो मैंने नहीं बताया! आप कृपया चुप रहिए I उसे
चलाने दीजिए, शुरू-शुरू में होता है ऐसे, नई बात नहीं है यह l"
मगर दिवाकर को बेटे की अनुभवहीनता व जल्दबाजी ने चिंता में डाल दिया l वह
हर दो - तीन मिनट में उसे टोकता और सलाह देने लगता l झुंँझलाकर ट्रेनर बोल
पड़ा l
" सर, आईए आप भी नीचे उतरिए और भइया आप वहाँ सामने का एक चक्कर लगाकर आईए l"
दोनों कार से नीचे उतर आए l दिवाकर को हक्का - बक्का देख रतनलाल बोला..
" ये आप क्या कर रहे हैं सर! आप उसे चलाने तो दो, अपने विवेक, अपने दिमाग़ से काम लेने तो दो l उसे आत्मनिर्भर होने दो l"
" लेकिन उसे अभी आता ही कहाँ है, बेटे!"
"
सर! मैंने उसे बता दिया न, गाड़ी उसे सौंप दी न! अब करने दो ग़लतियाँ,
लेने दो उसे ख़ुद से निर्णय l यही तरीका है सीखने - सिखाने का, ज़्यादा
टोका - टाकी से काम सही नहीं होता, विश्वास रखना होता है और विश्वास रखिए
वह सीख जाएगा l "
दिवाकर कभी रतनलाल तो कभी हिचकोले खाती, चलती - रुकती, फिर चलती कार को देखने लगा l
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