जलाकर ख्वाबों को मेरे अब पानी क्यों पूँछते हो?
बिखरी हुई हूं मैं जोड़ने की बानी क्यों पूँछते हो?
कोई नहीं है किनारे पर मेरे लिए,
फिर मेरी ज़िन्दगी की खामोश कहानी क्यों पूँछते हो?
दर्द हज़ारों है मेरे क्या पता नहीं है तुम्हें,
फिर बार बार मेरी परेशानी क्यों पूछते हो?
जीवन निकला बिन सारथी के मेरे,
फिर कैसे बर्बाद हुई कहानी क्यों पूछते हो?
समंदर दिल में छुपाये मुस्कुराती हूं मैं,
फिर तुम लहरों का हिसाब क्यों पूँछते हो?
वीरान हुआ महल अब आशियाना नहीं बनाना मुझे,
फिर खुले आसमा के नीचे मशाल जलाई, क्यों पूछते हो?
दोस्तों ने ही की है गद्दारी यहाँ,
फिर दुश्मनों ने क्या किया क्यों पूछते हो?
गुजरे लम्हें डराते बहुत है मुझे,
फिर हमसे बात पुरानी क्यों पूछते हो?
प्रियंका सिंह
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें