कृष्ण कान्त बडोनी
दिखाई दिये अब नजारे नहीं
कहीं चांद सूरज सितारे नहीं।
लगी धुंध की परत है यहां
मिले सुध किसी की इशारे नहीं।
घुटन मे जिये जा रहा है जहां
गलत क्या हुआ है विचारे नहीं।
थमी धड़कनें तो किसे दोष दें
कहेंगे कि ईश्वर पधारे नहीं।
करें शुद्ध वायु यही पेड़ हैं
लगें पेड़ भी सिर्फ नारे नहीं।
करें बन्द दोहन बचायें इसे
यही कल नहीं तो सहारे नहीं।
अभी वक्त रहते न सँभल सके
कहीं दूर कृष्णा किनारे नहीं।
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