अस्तित्व
मैंने फूलों और कांटों से प्यार किया।
फूलों ने मुझे खुशबू देने से इंकार किया।
कांटों ने मुझे हमेशा अपनों से दूर रखा।
शायद ये प्रकृति के,
बेजुबान उपमाएं।
मेरी भावनाओं को नही समझ सकी।
लेकिन मेरी भावनाएं,
उनकी अस्तित्व पर गर्व करती है।
मैंने फूलों और कांटों से प्यार किया।
फूलों ने मुझे खुशबू देने से इंकार किया।
कांटों ने मुझे हमेशा अपनों से दूर रखा।
शायद ये प्रकृति के,
बेजुबान उपमाएं।
मेरी भावनाओं को नही समझ सकी।
लेकिन मेरी भावनाएं,
उनकी अस्तित्व पर गर्व करती है।
शेर
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शेर का अस्तित्व है बचाना।
जंगल को हरा-भरा रखना।।
सभी वन्य जीवों की एक अलग है विशेषता।
जंगल का राजा शेर है कहलाता।।
चंद लालच एवं तस्करी का न करें खेल।
जंगल में जंगल का राजा, शेर का हो मेल।।
दिलों में जोश, जुनून एवं हो आत्मविश्वास।
शेर की शक्ति का करें आभास।।
शेर हो या राजा, कभी न करें अत्याचार।
अपने कर्मों का सभी को मिलेगा मार।।
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शेर का अस्तित्व है बचाना।
जंगल को हरा-भरा रखना।।
सभी वन्य जीवों की एक अलग है विशेषता।
जंगल का राजा शेर है कहलाता।।
चंद लालच एवं तस्करी का न करें खेल।
जंगल में जंगल का राजा, शेर का हो मेल।।
दिलों में जोश, जुनून एवं हो आत्मविश्वास।
शेर की शक्ति का करें आभास।।
शेर हो या राजा, कभी न करें अत्याचार।
अपने कर्मों का सभी को मिलेगा मार।।
पर्यावरण
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स्वास्थ्य एवं प्रकृति की करें रक्षा।
हमें मिलेंगी जीवन की सुरक्षा।।
मानव जीवन है दुर्लभ।
बनावटी को न कभी समझे सुलभ।।
पर्यावरण का रूप है प्राकृतिक।
इसे प्रदूषित न करें अत्याधिक।।
प्लास्टिक से धरती है भरी।
जल स्तर हुई है गहरी।।
शपथ लें ,न करें अत्याचार।
पर्यावरण की रक्षा का हो विचार।।
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स्वास्थ्य एवं प्रकृति की करें रक्षा।
हमें मिलेंगी जीवन की सुरक्षा।।
मानव जीवन है दुर्लभ।
बनावटी को न कभी समझे सुलभ।।
पर्यावरण का रूप है प्राकृतिक।
इसे प्रदूषित न करें अत्याधिक।।
प्लास्टिक से धरती है भरी।
जल स्तर हुई है गहरी।।
शपथ लें ,न करें अत्याचार।
पर्यावरण की रक्षा का हो विचार।।
द्रौपदी चीरहरण
जुए के लत में,
युधिष्ठिर ने द्रौपदी को हारा।
चीरहरण में,
श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को तारा।
अंधे के ही,
होते है अंधे।
दुर्योधन को,
ये परिहास लगे गंदे।
शकुनी मामा के,
शातिर खेल,
धर्म राज,
हुए बेबस और फेल।
वाणी और कर्मों को,
करें काबू।
द्रौपदी चीरहरण,
की पुनरावृत्ति न हो लागू।
जुए के लत में,
युधिष्ठिर ने द्रौपदी को हारा।
चीरहरण में,
श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को तारा।
अंधे के ही,
होते है अंधे।
दुर्योधन को,
ये परिहास लगे गंदे।
शकुनी मामा के,
शातिर खेल,
धर्म राज,
हुए बेबस और फेल।
वाणी और कर्मों को,
करें काबू।
द्रौपदी चीरहरण,
की पुनरावृत्ति न हो लागू।
ग्राम कोसमर्रा(रामपुर)
जिला KCG
जिला KCG
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