वासुकि प्रसाद ’ उन्मत्त ’
गहन रात है ठंड गिर रही
ख़ून जम रहा है नस - नस में
हवा शांत है शीत की वर्षा
अदृश्य सबको जमा रही है
शादी का है टेंट मनोरम
टेंट के भीतर मंच बड़ा सा
मंच के ऊपर दो सिंहासन
सिंहासन पर दूल्हा - दुल्हन
मानो विष्णु और लक्ष्मी हों
ऊपर खुल्ला आसमान है
शादी का यह टेंट लग रहा
इंद्रलोक सा विष्णुलोक सा
ऊपर आसमान में तारे
नहीं दिख रहे अंधकार है
मानों आसमान के तारे
तारिकाएंँ इस समारोह में
इधर से उधर चमक रहे हैं
ठिठुर रहे हैं कम कपड़ों में
फैशन के मारे हैं सब ही
डीजे की धुन पर मतवाली
फरिश्तों और अप्सराओं की
भीड़ मगन हो नाँच रही है
कपड़ों की हैं घिरी दीवारें
ऊपर खुल्ला आसमान है
काला - काला आसमान है
काली - काली जमी रात है
तारे नहीं नज़र हैं आ रहे
नाव की शक्ल में चाँद उगा है
अंधकार के नभ समुद्र में
लहरों पर वो पूर्ण स्थिर है
चाँद की नाव पर अंधकार ही
चढ़ा हुआ है बेफ़िक्री से
सिरा ऊपरी उठा है हल्का
निचला सिरा दबा है नीचे।
गहन रात है ठंड गिर रही
ख़ून जम रहा है नस - नस में
हवा शांत है शीत की वर्षा
अदृश्य सबको जमा रही है
शादी का है टेंट मनोरम
टेंट के भीतर मंच बड़ा सा
मंच के ऊपर दो सिंहासन
सिंहासन पर दूल्हा - दुल्हन
मानो विष्णु और लक्ष्मी हों
ऊपर खुल्ला आसमान है
शादी का यह टेंट लग रहा
इंद्रलोक सा विष्णुलोक सा
ऊपर आसमान में तारे
नहीं दिख रहे अंधकार है
मानों आसमान के तारे
तारिकाएंँ इस समारोह में
इधर से उधर चमक रहे हैं
ठिठुर रहे हैं कम कपड़ों में
फैशन के मारे हैं सब ही
डीजे की धुन पर मतवाली
फरिश्तों और अप्सराओं की
भीड़ मगन हो नाँच रही है
कपड़ों की हैं घिरी दीवारें
ऊपर खुल्ला आसमान है
काला - काला आसमान है
काली - काली जमी रात है
तारे नहीं नज़र हैं आ रहे
नाव की शक्ल में चाँद उगा है
अंधकार के नभ समुद्र में
लहरों पर वो पूर्ण स्थिर है
चाँद की नाव पर अंधकार ही
चढ़ा हुआ है बेफ़िक्री से
सिरा ऊपरी उठा है हल्का
निचला सिरा दबा है नीचे।
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