पूरन सरमा
प्रारंभ में मैं बाथरूम सिंगर था। फिल्मी गाने गाया और गुनगुनाया करता था।
पिताजी ने एक दिन प्यार से अपने पास बुलाया और कहा-‘बेटे क्या दिनभर
ऊल-जुलूल गाया करते हो। गाना गाने का इतना ही नशा है तो मैं तुम्हारी
शिक्षा विधिवत रूप से संगीत में करवा सकता हूँ, लेकिन सोचलो, है यह काम बड़ा
ही जटिल। राग-रागिनियों का ज्ञान हांसिल करने में पसीना निकल जायेगा। कल
मुझे बता देना यदि तुम वाकई संगीत सीखना चाहते हो तो।’
मैं चुपचाप अपने कमरे मे आ गया। अपनी पढ़ाई की पुस्तकों को एकपल देखा और
दूसरे पल ही खयाल आया कि संगीत सीखने से पढ़ाई से पिण्ड छूट सकता है और बाई
दी वे भगवान करे तो मैं वाकई नामी-गिरामी गायक भी बन सकता हूँ। मुझे लगा
बम्बई की फिल्मी दुनिया अब मुझसे ज्यादा दूर नहीं हैं।
दूसरे
दिन मैं ही गया पिताजी के पास और बोला-‘पिताजी आप मुझे संगीत क्षेत्र में
दीक्षित करवाइये। मैं वाकई गायक बनना चाहता हूँ। संगीत मेरी रग-रग में समा
चुका है। यदि समय रहते मैंने इस कौशल को नहीं सीखा तो जीवनभर पछताऊंगा।
पिताजी संगीत में बड़ा स्कोप है। फिल्मों में अवसर मिल गया तो सच मानिये
हमारी गरीबी अपना मुंह छुपाती फिरेगी। बताइये मुझे करना क्या है।’
पिताजी बोले-‘करना यही है कि सुरों का ज्ञान करके तुम्हें अपने गले को
साधना है। बेटा संगीत साधना है जिस तरह तुम रैंकते फिरते हो, उससे बाज आओ
और संगीत गुरू के चरणों में बैठकर संगीत को अपना जीवन साथी बनालो। गुरू के
बिना कोई ज्ञान नहीं आता है। अब जब तुम संगीत के शौकीन हो तो तुमने भीमसेन
बागी का नाम तो सुना होगा। हमारे शहर के सबसे बड़े संगीत गुरू। मैं उनसे बात
करता हूँ, यदि उन्होंने तुम्हारा हाथ थाम लिया तो फिर कोई वजह नहीं की तुम
एक उच्चकोटि के संगीत साधक, मेरा मतलब गायक न बन सको।’
मैंने कहा-‘देर किस बात की मेरे पिताजी, आप बागी साहब से बात करो मैं संगीत की बारीकियाँ जानने को अब बेकरार हूँ।’
पिताजी हंसे और बोले-‘थोड़ा धैर्य रखो। बागी साहब पहंुचे हुये गुरू हैं,
उनका तानपुरा तुम्हारे हाथ लग गया तो संगीत तो फिर बायें हाथ का खेल हो
जायेगा। मैं कल ही भीमसेन बागी से मिलता हूँ, लेकिन थोड़ा मन लगाकर और डूबकर
सीखना संगीत। कहीं ऐसा न हो कि बागी साहब मुझे उलाहना दे।’
2
मैं बोला-‘आप आश्वस्त रहें। भीमसेन बागी को मैं निराश नहीं करूंगा, बल्कि
उन्हें लगेगा कि यह प्रतिभा इतने दिन तक कहाँ खोई हुई थी। आपने मेरा
गुनगुनाना तो सुना होगा। पूत के पग पालने में ही नजर आ जाते हैं पिताजी।
होनहार बिरवान के होत चीकने पात।’
पितााजी
इस बार फिर हंसे और बोलेे-‘बेटा हीरे की परख जौहरी ही कर सकता है। मैंने
तुममें संगीत की चिंगारी सुलगती देखी है। चुपचाप मनोयोग से लग जाओ इस साधना
में। ईश्वर भला ही करेगा।’
दूसरे दिन पिताजी भीमसेन बागी के दौलतखाने पर जा धमके। उस समय खुद भीमसेन
बागी तानपुरे पर कोई राग आलाप रहे थे। मैं भी साथ था ही। पिताजी ने उन्हें
कई बार व्यवधान डालकर रोकने की कोशिश की परन्तु वे विफल रहे। वे अनवरत् गले
को रागों से भरते रहे। करीब एक धण्टे बाद जब उनका गायन रूका तो वे पिताजी
पर बरस पड़े। ‘कौन हो तुम और क्या लेने आये हो यहाँ पर। जब तुम संगीत का
ककहरा ही नहीं जानते हो तो मेरे पास आने की आवश्यकता क्या थी ?’
पिताजी ने हाथ बांधकर कहा-‘गुरूदेव यह बालक संगीत में क्रान्ति करने को
आतुर है। इसे संभालिये और इसे अपने ज्ञान सागर में से एक बंूद ज्ञान की
दीजिये। जो भी आपका शुल्क होगा, मैं दूंगा लेकिन इसे संगीत सम्राट बना
दीजिये।’
भीमसेन बागी ने
तानपूरा एक तरफ रखा और कहा-‘अच्छा संगीत सीखने की चाहत तुम्हें यहाँ खींच
लाई है। कौन, क्या यह बालक सीखना चाहता है संगीत ? मैं संगीत इसे जरूर सिखा
दूंगा परन्तु दो हजार रूपये माहवार होगा मेरा शुल्क। मैं कोई ऐरा गैरा या
नत्थू खैरा संगीतकार नहीं हूँ। तानसेन को मैंने अपना आदर्श मानकर संगीत
सीखा था। उसी का फल है कि आज मेरे पास पच्चीस बालक संगीत शास्त्र की शिक्षा
ग्रहण करते हैं। पहले मैं जो-जो चीजें संगीत की बता रहा हूँ, वे अविलम्ब
खरीद कर अपने राजकुंवर को लाकर दो। उसके बाद एडवांस लेकर आ जाओ। संगीत इसकी
नस-नस में डाल दूंगा। जब यहाँ से तीन साल बाद निकलेगा तो आप खुद दांतों
तले अंगुली दबा लेंगे।’
तीन दिन बाद सारा साजो सामान व एडवांस लेकर भीमसेन बागी के पहुंचा तो वे
संगीत साधना में लीन थे। एक धण्टे बाद जब उन्होंने विराम लिया तो मैंने
अपना मन्तव्य बताया। रूपये कुर्त्ते की जेब के हवाले करके वे बोले-‘देखो
बालक संगीत रियाज से आता है यह कोई एक दिन का शगल नहीं है। अब तो यह
तुम्हारे जीवनभर का साथी है। यहाँ जो भी होता है वह देखो और सीखो। गले का
उतार-चढाव जानो और अभ्यास करो। संगीत धीरे-धीरे समझ में आने लगेगा।’
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इस तरह मैं भीमसेन बागी के यहाँ संगीत सीखने लगा। घर आकर संगीत का रियाज
अलग करना पडता था। जब अपने कमरे में तानपूरा छेड़ता और सुर साधता तो मौहल्ले
में खुसुर-फुसुर होने लगी। मैं रात के सन्नाटे में दो-दो बजे तक कभी सुर,
कभी तबला और कभी तानपूरा छेड़ता तो सोने वालों की आंखों से नींद हराम हो गई।
मौहल्ले के बूढ़े-बुजुर्गों का एक शिष्ट मण्डल एक दिन हमारे घर आ धमका।
पिताजी ने सोचा वे मेरी तारीफ के पुल बांधने आया है लेकिन जब शिष्ट मण्डल
ने मेरी संगीत साधना की शिकायत की तो उनके हाथों के तोते उड़ गये। वे मेरी
ओर देखने लगे। मैं भी उन्हें देखने लगा। शिष्ट मण्डल का एक सदस्य
बोला-‘शर्माजी आप तो समझदार हैं। आपके बच्चे को यह क्या हो गया है। पूरे
मौहल्ले का चैन छीन लिया है। इस तानसेन को रोकिये वरना हमें पुलिस की शरण
में जाना पड़ेगा। नींद की गोलियाँ खाने के बाद भी मौहल्ला सो नहीं पा रहा
है। जिस बालक को संगीत का ज्ञान नहीं है, उसे आपने संगीत के हवाले कर दिया
है।’
पिताजी बोले-‘देखिये, यह
आपका ही बालक है। संगीत में कुछ कर गुजरने की तमन्ना है। यदि यह रियाज नहीं
करेगा तो संगीत इसकी नस-नस में कैसे समायेगा। इसे अपना बालक समझकर आगे
बढ़ने दीजिये। मैं इस पर दो हजार रूपये माहवार व्यय कर रहा हूँ। भीमसेन बागी
से संगीत सीख रहा है।’
भीमसेन
बागी का नाम सुनकर वे सब हंस पड़े और बोले-‘क्यों पैसे कुएं में डाल रहे
हो। वह तो पूरी तरह व्यावसायिक है। लेकिन हमें इससे क्या, हम तो सिर्फ इतना
चाहते हैं कि रात में संगीत का रियाज शरीफों के मोहल्ले में चलने वाला है
नहीं। इसलिए इस तानसेन को यहीं रोकिये।’
पिताजी
थोड़ा गुस्से में आ गये और बोले-‘आप लोग कमाल करते हैं। मेरा बच्चा संगीत
में थोड़ा आगे बढ़ने लगा तो जल उठे। बच्चा रियाज नहीं करेगा तो क्या चुप
बैठकर संगीत सीखेगा ?’
शिष्ट मण्डल बोला-‘ज्यादा अकड़ने की जरूरत नहीं है। संगीत सीखे तो जाये
भीमसेन बागी के यहाँ। हमारे मोहल्ले ने क्या पाप किया है जो आधी-आधी रात तक
इसकी रैंक सुनता रहेगा। या तो आप चुपचाप रास्ते पर आ जाइये वरना कानून के
हाथ बहुत लम्बे हैं। हमें मजबूर होकर कानून की शरण लेनी पड़ेगी।’
इस
बार मैं बोला-‘देखिये आप लोग मेरे रास्ते का रोड़ा न बने। संगीत साधना से
रोकने वाले आप होते कौन हैं ? आप कुछ भी कर लीजिये, मेरा रियाज इसी तर्ज पर
जारी रहेगा।’
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‘ज्यादा मत बोल। संगीत सीखने से पहले खुद को तोल तो लिया होता। आज के बाद
करना रियाज।’ यह कहकर शिष्ट मण्डल चला गया। मेरा संगीत सीखने का क्रम जारी
रहा। अचानक एक दिन पुलिस की गाड़ी हमारे घर के सामने आ खड़ी हुई। पुलिस
इन्सपैक्टर ने जब अंदर आकर पिताजी के नाम से आवाज लगाई तो मेरे संगीत का
कण्ठ सूख गया।
पिताजी
बाहर आ गये। पुलिस इंसपैक्टर बोला-‘भाई शर्मा जी आपके खिलाफ पूरे मौहल्ले
ने मोर्चा संभाल लिया है। आपका बालक रात दो-दो बजे तक संगीत का रियाज करता
है। या तो इसे रोकिये वरना हमें मतबूरन कार्यवाही करनी पडे़गी।’
पिताजी पुलिस से मेरी ही तरह बहुत डरते हैं, बोले-‘कोई बात नहीं सर मैं बालक को समझा दूंगा।’
‘तो ठीक है, आज से संगीत साधना रात में किसी कीमत पर नहीं होगी।’
इसके
बाद से मेरे कण्ठ से कोई सुर नहीं फूट रहा है। मुझे लग रहा है मैं संगीत
सीखकर बुरा ही फंसा हूँ। इधर खाई, उधर कुआं। राग सारे बेसुरे हो गये हैं।
सोचता हूँ संगीत को छोड़ ही दूं तो मेरे और मोहल्ले के हित में होगा।
पता
124/61-62, अग्रवाल फार्म,
मानसरोवर, जयपुर-302 020,
मोबाइल-9828024500
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