डॉ॰ गौरव त्रिपाठी
तब निज अश्रु छिपा -छिपा कर, दिल से अपने रोया होगा।।
बिठा के सइकल के डंडे पर ,
दर दर हमको टहलाया।
जगती आंखों में मेरे,
सपने उसने सजाया।
हर सपने को पूरित करने,
खुद को सदा तपाया।
हमको भी तो स्वर्ण बनाकर,,
अंदर ही मुस्काया।।
जब मुस्कानों का हरण मेरे ,इस जग मे कोई किया होगा।
तब निज अश्रु छिपा छिपा कर दिल से अपने रोया होगा।।
सब्जी के वह पैसे काटे,
किताब बहुत दिलाया ।
राह गलत जब होती मेरी ,
रस्ता उसने दिखाया।
मानदंड जो दुनिया के हैं ,
उनको खुद ही हराया।
अपने चाहत के भवनों में ,, जब हमको विह्वल पाया होगा।
तब निज अश्रु छिपा छिपा कर दिलसे अपने रोया होगा।।
मेरे पद का घमंड कहीं वह,
कभी नही दिखलाया।
सीधी -साधी सरल जिंदगी ,
उसने अपना बनाया।
चाहत उनकी मैं मुस्काऊं,
दुनिया को बतलाया।
मेरे मुस्कानो को जब भी राहू ग्रास बनाया होगा।
तब निज अश्रु छिपा छिपा कर दिल से अपने रोया होगा।।
जीवन के भौतिक हाटोंं में ,
न उसने कोई होड़ किया।
जो कंकड पत्थर भारी थे ,
उसने सबको तोड दिया।
मैं चीजें अच्छी खा पाऊ ,
उसने ही खाना छोड दिया।
जिस क्षण खाने पर मेरे तो काल कोई मड़राया होगा
तब निज अश्रु छिपा छिपा कर दिल से अपने रोया होगा।।
असिस्टेंट प्रोफेसर
राजकीय पी जी कालेज मुसाफिरखाना
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