जनक लाल ’ बेफिक्र’
यूं ही नज़रें ज़रा झुका ली है,
कोई तो बात इक सँभाली है।।
आज़ हसरत दिखी नज़र में इक,
दिल में शायद जगह बना ली है।।
यादों से हो गई हमें फुरसत,
हो गया अब मकान खाली है।।
बस तुम्हारी खुशी की खातिर ही,
तोहमत - ए -इश्क ये सज़ा ली है।।
चांद की जुस्तुजू सितारे ने,
रात की ओट में बढ़ा ली है।।
हाल दिल का छुपा लिया उसने,
ओढ़ ली इक नकाब काली है।।
सच छुपाया गया नहीं मुझसे,
आंख उनकी बहुत सवाली है।।
आज़ नाराज़ दिख रहे मुझसे,
आज खाली ये मय की प्याली है।।
लफ़ज़ों में है नशा मुहब्बत का,
आज तो बज रही बहुत ताली है।।
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