मधुकवि राकेश माधुर
भारत वादी जन मानस के,मुख पर मारा चांटा है ||
पढ़े लिखे भी सूद्र हो गये,कुपढ़ों की श्रेणी को छीन ||
कुर्सी पाने के चक्कर में,नेता बन जाते हैं दीन ||
बनकर दीन यही नेता फिर,दीनों का हक खा जाते ||
दीन गरीबों को आपस में,ये ही नेता लड़वाते ||
जिन्हें मात्र सत्ता प्यारी है,उन्हें सूद्रता भी स्वीकार ||
वाह-वाह भारत के नायक,जन समाज के पहरेदार ||
कैसे सरकारी सम्पति पर,हो जाए मेरा अधिकार ||
हिंदुस्तानी नेता के मन,पलता सब दिन यही विचार ||
सामाजिक सेवक खुद को कह,कपटी मुनि यह नेता है ||
हमने कितने नेताओं को,इस हालत में देखा है ||
मोदी जी अब जल्द लाइये,तुम कोई ऐसा कानून ||
भ्रष्टाचारी ना छुप पाएं,पकड़े जाएं अफलातून ||
जातिवाद का जहर घोलकर,सदा करें भारत कमजोर ||
सब कोई आजाद आज है,शोर मचाते केवल चोर ||
जातिवाद और धर्म वाद से,भारत का उद्धार नहीं ||
जातिवाद और धर्म वाद में,भारत मां का प्यार नहीं ||
कृष्ण कान्ति हैं भारत मां की,बुद्ध अहिंसा की पहचान ||
भारत का आदर्श राम हैं,हिंदी हिंदू हिंदुस्तान ||
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