सुमन युसुफपुरी
धूप फिर तीरगी में बदल ही गई
शाम सूरज को आ कर निगल ही गई
थी दुआ दोस्तों की मेरे साथ में
जो बला सर पे आई वो टल ही गई
हो गया प्यार मुझ को है तुझ से बहुत
बात दिल की जबाँ से निकल ही गई
एक लड़की मिली मुझ से फागुन में थी
रंग चेहरे पे उल्फ़त के मल ही गई
उस ने देखा कभी जो मुझे प्यार से
एक मीठी छुरी दिल पे चल ही गई
ईद की रात में चाँद जलता रहा
बुझ गया वो सुब्ह रात ढल ही गई
लाख ख़ुद को संभाला था मैंने ’ सुमन’
देख उस को तबीअत मचल ही गई
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