शालिनी श्रीवास्तव
चटक भाल सिन्दुरी दिनकर
शक्ति अलौकिक कर वरण
क्षितिज से बसुधा पर उतरी
करने पग फेरे भोर किरण
स्नेह सुमन निर्मल उर सरिता
आंचल में लिये तुहिन कण
सौन्दर्य श्रृंगारित सहज सुवासित
स्वर्ग का ज्यूं हुआ अवतरण
काटती मन तिमिर का आरण
सम्पूर्ण अंधियारे का क्षरण
लिपट कर धरा के अंकपाश
छूती तनया सी पावस चरण
भव्य दिवस का शुभागमन
उपहार आस लिए जागरण
बिखेरे कस्तूरी मलय पवन
घोलती मिठास वातावरण
प्रस्फुटित कमल खुले अधर
उलटती तिमिर का आवरण
सद्य-स्नात पसारे वस्त्र उजले
जीवन गीत का संवारे व्याकरण
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